Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 07
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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[83]
डमरभरगरलधरहननवनधरसखं
प्रथममनवरतमवनमत शमदमधरम् ॥ ११ ॥
नरकगजकल भदलदलनखरनखरख
प्रखरगजमथनसममचलपदपथरथम् ।
तमनवमनवमरससवनगतमलचयं
प्रथममनवरतमवनमत शमदमधरम् ॥ १२
श्रीसोमसुन्दरगरिममन्दिरसुमुनिसुन्दरपूजितं
श्री आदिनाथं गुणसनाथं य इति विनुवति सन्ततम् । तेनाशुभासुरनरसुरासुरराजपदवी लभ्यते
क्रमतोऽपि विमला मुक्तिकमलाकामिनी परिरभ्यते ॥ १३ ॥
इति श्रीयुगादिस्तवनम् । महोपाध्याय श्री हेमहंसगणिकृतम् ।
सुन्दरदेवगणिलिखितम् ।
श्री पार्श्वनाथलघुस्तवनम्
धर्म्ममहारथसारथिसारम् । सरससुकोमलवचनविचारम् । सुचरितसलिलासारम् । सिद्धिवधूवक्षःस्थलहारम् । केवलकमलाली [ला ] गारम् । नागद्रहशृङ्गारम् ॥ १ ॥
मारविकारनिवारय (यि) तारम् । तारस्वरसुरगीताचारम् । क्षत्रियराजकुमारम् । स्फारफणावलिमण्डलधारम् । कारंकारं विनयमपारम् । वन्दे देवमुदारम् ॥ २ ॥
दिवसपतिः प्रतिभयनिस्तारी । चन्द्रश्चारुकलाविस्तारी । मङ्गलउदयाकारी । किं च बुधः सुधियामुपकारी । सुद्भगुरुरामयदोषनिवारी । शुक्रो विक्रमकारी ॥ ३ ॥
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