Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 07
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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सिद्धान्तविरुद्ध इत्यादिक घणूं विचारवू ॥७७।।
"जावं च णं एस जीवे सया समिएयइ वेयइ चलइ फंदइ जाव तं तं भावं परिणमइ तावं च णं एस जीवे आरभइ सारभइ समारभइ" इत्यादिक भगवती मंडियपुत्रना आलावामां
. "इह जीवग्रहणेडपि सयोग एवासौ ग्राह्योऽयोगस्यजनादेरसम्भवात्" ए वृत्तिवचन उल्लंघीनिं सयोगि जीव केवलिव्यतिरिक्त लेवो एहवू लिख्यूं छइ तें प्रगट हठ जणाइ छइ ॥७८॥
"जिहां तांइ एजनादि क्रिया तिहां ताई आरंभादिक ३नो नियम न घटइ, ते मार्टि आरंभादिक शब्दि योगज कहिइ, योग हुइ तिहां ताई अंतक्रिया न हुइ एहवो ए सूत्रनो अभिप्राय'' एहवू कहइ छइ ते अपूर्वज पंडित, जे माटि ए अर्थ वृत्ति नथी. तथा आरंभादिक अन्यतर नियमनि अभिप्राइं सूत्रिं विरोध पणि नथी ए रीतिनां सूत्र बीजाई दीसइ छइ. तथा हि
"जाव णं एस जीवे सया समियं एयइ जाव तं तं भावं परिणमइ ताव णं अट्ठविहबंधए वा सत्तविहबंधए वा छव्विहबंधए वा एगविहबंधए वा नो णं अबंधए" इत्यादिक तथा आरंभादिक ३ शब्दि एक योगनो अर्थ ए पणि न संभवइ इत्यादि विचारवू ।।७९।।
"तत्साक्षाज्जीवघातलक्षण आरम्भो नान्तक्रियाप्रतिबन्धकः, तदभावेऽन्तक्रियाया अभणनात्, प्रत्युताऽनिकापुत्राचार्य-गजसुकुमारादिदृष्टान्तेन सत्यामपि जीवविराधनायां केवलज्ञानान्तक्रिययोर्जायमानत्वात् कुतस्त-त्प्रतिबन्धकत्वशङ्काऽपि" (गा. २९ वृत्तिः )
___ एहवू सर्वज्ञशतकमां लिख्यूं छई ते प्रकट स्वमतविरुद्ध ॥८०॥
शैलेश्यवस्थायां मशकादीनां कायसंस्पर्शेन प्राणत्यागेऽपि पञ्चधोपादानकारणयोगाभावान्नास्ति बन्धः, उपशान्तक्षीणमोहसयोगिकेवलिनां स्थितिनिमित्तकषायाभावात् सामायिक" इत्यादिक आचारांगवृत्तिं कहिठं छइ. तथा
___ "सेलेसिं पडिवनस्स जे सत्ता फरिसं पप्प उद्दायंति मसगादी । तन्थ कम्मबंधो णत्थि । सजोगिस्स कम्मबंधो दो समया" ।
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