Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 07
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 41
________________ 16 केवलीनिं अवश्यंभावीपणि आरंभ निषेध्यो छइ ए परस्पर विरुद्ध छइ ॥६९।। "विनापवाद जाणी जीवघात करइ ते असंयत हुइ'' एहवू कहइ छइ ते खोटुं, जे मार्टि अपवादि आभोगिं हिंसाइं पणि जिम आशयशुद्धताथी दोष नहीं तिम अपवाद विना अशक्यपरिहार जीवविराधनाइं पणि आशयशुद्धताई ज दोष न होइ. नही तो विहारादिक क्रिया सर्व दुष्ट थाइ. सिद्धान्तथी विराधनानो निश्चय थई पोतानं अदर्शनमात्रिं जो विहारादिक क्रियामां जे विराधना छइ ते अनाभोगि ज कहीइ तो निरंतर जीवाकुलभूमिका निर्धारी तिहां रात्रि विहार करतां विराधनानो अनाभोग कहवाइ ||७०।। "नदी ऊतरतां अभोगि जलजीवविराधना यतीनिं हुइ तो जलजीवघाति विरतिपरिणाम खंडित होइ ते भणि देशविरति थाइ जाणीनि एकव्रतभंगि सर्वविरति रहइ तो सम्यग्दृष्टी सर्वनिं चारित्र लेतां बाधक न होइ' एहवू कहइ छइ ते न घटइ, जे मार्टि नदी ऊतरतां द्रव्यहिंसाइ आज्ञाशुद्धपणइ ज दोष नथी. तथा सम्यग्दृष्टी योग्य जाणीनिं ज चारित्र आदरइ जिम व्यापारी व्यापार प्रति प्रिछी थोड़ी खोटि होइ अनि संभाली लिइ तो बाधा नहीं पणि पहिला खोटिज जाणी कोई सबलो व्यापार आदरइ नहीं ते प्रीछवू ।। ७१ ।। "अपवादिं जिननो उपदेश होइ पणि विधिमुखि आदेश न होइ'' एहवू कहइ छइ ते खोटुं, जे माटिं छेदग्रंथि अपवादि घणां विधिवचन दीसइ छइ ॥७२।। "वस्त्रि गलिउं ज पाणी पीवू इहां पीवानो सावधपणा माटि विधि नहि पणि गलवानो ज विधि" एहवू कहइ छइ ते न मिलइ, जे माटि गालन पणि शस्त्र कहिउं छइ. यत : "उस्सिचगालणधोअणे य उवगरणकोसभंडे य । बायर आउक्काए, एयं तु समासओ सत्थं ॥ आचारांगसूत्रनिर्युक्तौ ॥ (अ.१.नि.गा.११३) ॥ ७३ ।। "द्रव्यहिंसाई द्रव्यथी हिंसा- पच्चक्खाण भाजइ'' एहवू कहइ छइ ते न घटइ, जे मार्टि धर्मोपकरण राखतां द्रव्यथी परिग्रहनु पच्चक्खाण भाजइ एहवू दिगंबरिं कहिउं छइ. तिहां विशेषावश्यकिं द्रव्य-क्षेत्र-कालथी भावनुं ज पच्चक्खाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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