Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 07
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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णेवं कत्थ वि सत्थे दिलु इटुं व गणहरत्तस्स । अप्पाउअत्तणं तुह पकप्पिअं दूसगत्तेणं ॥३२॥ जं पि अ कत्थवि गुरुणो अप्पडिरूवाइ दूसणं भणियं । तं पि न जायमजायं करेइ गणहारिभावं से ॥३३।। अण्णह ठवणाणंतर मंगावयवंमि दुट्ठजइ किंचि । दूसणपंतिनिविठु दूसिज्ज गणित्तणं तंतो ।।३४।। तम्हा अप्पडिरूवो न य ठविअव्वो त्ति होइ संसिद्धं । ठविओ पुण गणहारी अप्पडिरूवो वि संभवइ ॥३५।। जह कण्णा परिणिज्जइ रूवाइसयड्डिसंजुया सम्म । केण वि मिसेण पुण सा परिणीया अपडिरूवावि ॥३६।। परिणीय अपरिणीआ जह सा कण्णा ण होइ कइया वि । अप्पडिरूवो वि तहा ठविओ णो अठविओ सूरी ॥३७|| अणाणा रूवाई णियया णियया हवंति ता दोसा । अप्पाउअत्तणं पुण दोसु वि एएसु णो भणियं ॥३८॥ आणेइ कहवि जइ ता अप्पडिरूवाइयंमि नन्नत्थ । अणियत्तणेण तं पि हु समाहिअं पुव्वमिह सम्मं ॥३९।। वत्थुठिईए पुण तं, भाविज्जंतं न दूसणं कह वि । ता तत्थ समाहाणं सुहाइकडुअत्तणपमोसो ॥४०॥ वंसावुच्छेअट्ठा ठविज्जमाणा वि पुत्तु रज्जंमि । दीहाउच्चिअ हुज्जइ इय नियमो जं न लोएवि ॥४१।। अह कहमुसभजिणो, जाणतो विअ समाउए पुत्ते । सयमवि ठवेइ रज्जे पिहु पिहु वंसस्स रक्खट्ठा ॥४२॥ संतंमि सामिपाए ते रायाणो अ तेसि पुत्तावि । भरहनिवेणं ठविआ, छंदेण निवा पपुत्तावि ॥४३।।
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