Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 07
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 11
________________ [6] सक्खं चि एवं खलु ताए संतंमि हुंति रायाणो । जह रामकेसवमुहा पुत्ता वसुदेवपमुहंमि ||४४|| वसुदेवो वि अ राया तहेव राया समुद्दविजओ वि । सव्वेवि वा दसारा तेसिं केसिंचि पुत्तावि ॥४५॥ एवं जादवव॑से जुगवं बहवो वि पुत्तपितिपमुहा । पइ सत्थं रायाणो भणिआ उसभस्स वंसे अ ॥४६॥ दहिवाहण - करकंडूपमुहा जयविजयधम्मभाईआ । पितिपुत्ता समकालं रायाणो जायअभिसेआ ||४७॥ किं बहु भणिएणं वा जइ सामंता वि हुंति रायाणो । ता ठविअ सपुत्ताणं निवत्तणे को णु संदेहो ॥४८॥ इमेवं विअ जुज्जइ अण्णह इह चक्कवट्टिमाईणं । संते जणगप्पमुहे न चक्किपयमाइयं होइ ॥ ४९ ॥ एएणमिमं सिद्धं बहुपुत्तो जो हवेइ महराया । सो छंदेण ठवेई पिहु पिहू रज्जंमि नियपुत्ते ॥५० णियणियदेसविसेसं पत्ता ते तत्थ तत्थ रायाणो । रज्जं कुणंति सव्वे पिउणो आणाइ वट्टंता ॥५१॥ जणगो वि तेसिमेवं सेवंताणं करेइ सुपसायं । समबुद्धी सव्वेसुवि जइणो गहियं वयं हुज्जा ॥५२॥ तेसिं पुण जइ एगो महब्बलो होइ होउ ता नूणं । सो अग्गजोणुजो वा नियमो पुण इत्थ ण हु कोवि ॥५३॥ ठविअत्तणाविसेसा वंसे सव्वेसि तेसि परिवाडी । अव्वच्छित्तिणिमित्तं हवेइ एगोवि जा वंसे ॥५४॥ समगं ठविआणं पुण गहित्तुकामो हवेइ जइ दिक्खं । अहवा सो अप्पाऊ रज्जमि ठवेइ तो पुतं ॥५५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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