Book Title: Anubhuti evam Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 12
________________ चौथा गुणस्थान सत्य दर्शन रूप सम्यक्त्व है इसमें होते चारों गति के जीव औपशमिक क्षायोपशमिक और क्षायिके तीनों प्रकार से संसार की असारता को जानकर भी जब जीव अप्रत्याख्यान के उदय से विरति में असमर्थ होता है यही अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान है साधिक छासठ सागरोपम इसका उत्कृष्ट काल है भोगों का कर यत्किंचित त्याग करते हैं व्रत को ग्रहण प्रत्याख्यान के उदय वाले ऐसे सम्यक्त्व धारी तीर्यच और मनुष्य पाँचवे देशविरति गुणस्थान में होते हैं। देशोनपूर्व क्रोड इसका उत्कृष्ट काल है। संसार के भोगों और आरम्भ समारम्भ का सम्पूर्ण होता है जब त्याग ऐसे पंचमहाव्रतधारी मुनिगण संज्वलन और नो कषाय के उदय से Jain Education International प्रमत्त गुणस्थान पर होते हैं प्रमाद बिना वही होते सातवें अप्रमत्त गुणस्थान पर अन्तर्मुहूर्त काल वाले इन दोनों गुणस्थान में मुनि झूलता रहता है। अनुभूति एवं दर्शन / 11 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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