Book Title: Anubhuti evam Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 26
________________ युग पुरूष भारत की धर्म वसुधा पर जिन शासन के नभ में आलोकित हे ज्ञानपुंज! दुबली-पतली और प्रलम्ब काया में अवतरित हे युगस्रष्टा तुमको है कोटि-कोटि वन्दन अभिनन्दन तेरे दिव्य गमन से हुआ एक युग का अंत हे सत्य के अन्वेषक ! विच्छिन्न हुए त्रिस्तुतिक सिद्धान्त का तुमने पुनर्सधान किया और मनुष्य को देवों की गुलामी से मुक्त किया स्वाभिमान से जीने का मार्ग प्रशस्त किया हे आगमों के गहन अध्येता! आगमों का मंथन कर तुमने जो नवनीत दिया वह बन गया अभिधान राजेन्द्र विद्वत् जनों की दुर्लभ निधि अनुभूति एवं दर्शन / 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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