Book Title: Anubhuti evam Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 39
________________ ऋजु सूत्र नय द्रव्य को गौणकर केवल पर्याय को ग्रहण करता है भूत, भविष्य को भी नहीं केवल वर्तमान पर्यायों को मुख्य बनाता। शब्द नय लिंग विभक्ति कारक की भिन्नता से अर्थ भेद मानता है किंतु पर्यायवाची नामों को एक ही अर्थ का वाचक मानता है। समभिरूढ़ नय शब्द के व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ को ही प्रधानता देता है राजा और नृप में भी अर्थ भेद करता है एवंभूत नय कहता है व्युत्पत्तिपरक अर्थ जिस समय जिस वस्तु पर्याय में घटित होता है उस समय ही वह वस्तु उस शब्द से वाच्य हो सकती है प्रथम तीन द्रव्यार्थिक नय है जिनमें द्रव्य प्रमुख पर्याय गौण है शेष चार नय पर्यायार्थिक है पर्याय प्रमुख और द्रव्य गौण है एकान्त के आग्रह से कोई भी नय दुर्नय बन जाता है किंतु प्रतिपक्षी नय का निरसन किये बिना तटस्थता से जब कथन करता है तो वही नय सुनय बन जाता है। अनुभूति एवं दर्शन / 38 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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