Book Title: Anubhuti evam Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

View full book text
Previous | Next

Page 38
________________ नय अनन्ततिम्क वस्तु के एक अंश को ग्रहण कर उसके सापेक्ष कथन की शैली का नाम है नय निरपेक्ष या एकांतिक कथन दुर्नय है सापेक्ष कथन सुनय है सिद्धसेन कहते हैं जितने कथन के तरीके उतने ही नय प्रकार किंतु मुख्य नय तो सात हैं नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द और समभिरूढ़ अंतिम है एवंभूत नैगम नय सामान्य और विशेष उभय पक्ष से वस्तु को जानता और कहता है भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालों को ग्रहण करता है संग्रह नय द्रव्य और पर्याय दोनों का ग्रहण करते हुए भी द्रव्य को प्रमुख तथा पर्याय को गौण करके कथन करता है। व्यवहार नय वस्तु में भेद-प्रभेद करता है और सामान्य को गौण कर विशेष को मुख्य बनाता वस्तु की व्यक्तिगत विशेषताओं पर अधिक ध्यान देता है अनुभूति एवं दर्शन / 37 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58