Book Title: Anubhuti evam Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

View full book text
Previous | Next

Page 51
________________ जैन दर्शन जैन दर्शन के प्रवर्तक तीर्थंकर कहलाते विशिष्ट पुण्य के धनी स्वयं कर्मक्षय कर सर्वज्ञ सर्वदर्शी हो जीवों को जगत का स्वरूप और मुक्ति मार्ग बताते पंच अस्तिकाय, नवतत्त्व और षद्रव्य का प्रतिपादन करते उनके दृष्टि पथ में समूचा विश्व जीव अजीव धर्म अधर्म आकाश और काल इन छ: द्रव्यों का खेल है जगत का न कोई आदि है और न कोई अन्त है न कोई स्रष्टा है और न संहारक यह तो है अनादि अनन्त काल चक्र के अनुरूप इसमें उत्थान-पतन का क्रम है चलता जगत् में जीवों के हैं दो प्रकार बध्द और मुक्त कर्म के अनादि संयोग से अनादि काल से संसार चक्र में परिभ्रमण जो कर रहे अनुभूति एवं दर्शन / 50 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58