Book Title: Anubhuti evam Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 57
________________ वेदान्त दर्शन अद्वैत वेदान्त दर्शन के प्रवर्तक शंकराचार्य है उनका सिद्धान्त है माया के कारण ब्रह्म ही विश्वरूप में प्रतिभासित होता है माया न सत् है न असत् ब्रह्म से भिन्न उसकी कोई सत्ता भी नहीं फिर भी वह ब्रह्म नहीं माया तो ब्रह्म की वह शक्ति हैं जिससे नाना रूपात्मक विश्व की प्रतीति होती है ब्रह्म और आत्मा में कोई भेद नहीं ब्रह्म आत्मा रूप है और आत्मा ही ब्रह्म रूप है ब्रह्म एकमात्र सत्य है शेष सभी मात्र मिथ्या आभास हैं माया सहित ब्रह्म ही ईश्वर है जो सर्वज्ञ जगत का स्रष्टा पालक एवं संहारक है आत्मा स्वभावतः नित्य मुक्त शुद्ध चैतन्य है किन्तु अज्ञान के वशीभूत स्वयं को बन्धन ग्रस्त मानता है शरीर से आसक्त होकर शारीरिक अनुभूतियों को अपनी समझना ही बन्धन है एक मात्र ज्ञान ही मोक्ष का साधन है ज्ञान के फलस्वरूप जब जीव और ब्रह्म का द्वैत भाव समाप्त होता है बन्धन का अन्त हो अद्वैत की अनुभूति होती है । Jain Education International ܀܀܀ अनुभूति एवं दर्शन / 56 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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