Book Title: Anubhuti evam Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 55
________________ Jain Education International सांख्य दर्शन सांख्य दर्शन के प्रणेता महिष कपिल है । सांख्य ईश्वर को जगत का स्रष्टा नहीं मानता बल्कि प्रकृति - पुरूष के संयोग की फलश्रुति मानता पुरुष का सान्निध्य पा प्रकृति से ही होता जगत का विकास है सत्व रज एवं तमो गुण की साम्यावस्था है प्रकृति पुरुष का सान्निध्य पाकर जड़ प्रकृति में विक्षोभ है होता सृष्टिक्रम में सर्वप्रथम आविर्भूत तत्त्व महत है महत् से अहंकार और अहंकार से एक ओर पांच ज्ञानेन्द्रियाँ पाँच कर्मेन्द्रियाँ एवं मन की उत्पत्ति होती है । तथा दूसरी ओर पंचतन्मात्राएं उनसे फिर क्रमशः पंचभूत का होता है विकास इस सृष्टि का आधार उपर्युक्त पच्चीस तत्व हैं प्रलय का अर्थ है प्रकृति के तीनों गुणों का साम्यावस्था में चले जाना संसार दुःखमय है औौर दुखों की आत्यंतिक अनुभूति एवं दर्शन / 54 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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