Book Title: Anubhuti evam Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 35
________________ जैनदर्शन में प्रमाण सम्यक हो वस्तु तत्त्व का निर्णय, अनध्यवसाय, संशय और विपर्यय से रहित निर्णय वही प्रमाण कहलाता प्रत्यक्ष और परोक्ष द्विविध है प्रमाण स्पष्ट ज्ञान प्रत्यक्ष कहलाता वह भी पुन: द्विविध होता। इन्द्रिय और मन से अवग्रह, ईहा अपाय धारणा रूप ज्ञान सांव्यावहारिक प्रत्यक्ष कहलाता इन्द्रिय और मन के बिना केवल आत्मा से ही जो होता है पारमार्थिक प्रत्यक्ष माना जाता इस वर्ग में आते अवधि, मनःपर्यव और केवल ज्ञान अस्पष्ट ज्ञान ही परोक्ष प्रमाण है स्मृति, प्रत्यभिज्ञा, ऊह अनुमान और आगम है इसके पाँच प्रकार धारणात्मक ज्ञान से उत्पन्न होती 'स्मृति है प्रत्यक्ष और स्मरण से उत्पन्न होता है जो ज्ञान यही प्रत्यभिज्ञा नाम का है परोक्ष प्रमाण सहउपलब्धि या अनुपलब्धि निमित्त से होने वाला व्याप्ति ज्ञान ही 'ऊह' कहलाता अनुभूति एवं दर्शन / 34 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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