Book Title: Anubhuti evam Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 24
________________ गुरू मिट्टी के ढेर को कहाँ पता होता है कि, उसमें कितनी संभावनाओं का भंडार है उससे सुंदर वस्तुएं गढता है कुम्हार वैसे ही सुसंस्कारो से कर अलंकृत श्रेष्ठ शिक्षाओं से कर अभिमण्डित अथक परिश्रम से गुरू करता है शिष्य के जीवन का उत्थान श्रीफल सम होता है गुरू ऊपर से कठोर किन्तु अन्दर से कोमल जैसे कुम्हार ऊपर से थाप देता है किन्तु अन्दर से कोमल हाथ से सहेजता जब होता अनुशासन का उल्लंघन गुरू भास्कर बन तमतमाता किन्तु आज्ञाओं के अनुपालन में मयंक की शीतलता बरसाता। गुरू अज्ञानतम को हरता है दीपशिखा बन मन का कलुष पखाल कर सदगुणों की सौरभ देता शिष्य के मनोभावों का वह होता है विज्ञाता विचलन में भी राह दिखाता। अनुभूति एवं दर्शन / 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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