Book Title: Anubhuti evam Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 27
________________ हे लौह पुरूष ! तुम सदा रहे पर्वत से अटल विघ्न बाधाओं में कभी न झुकने वाले समस्याओं से जूझती मानवता को समाधान की रोशनी देने वाले हे तपस्वी योगी ! गिरि कंदराओ और गुफाओं में ध्यान-साधना से कर्म क्षरण करने वाले आत्मा को तराश कर मन का. कलुष पखारने वाले यति परम्परा का उन्मूलन कर श्रमण संस्कृति को बचाने वाले तेरे अमूल्य अवदानों को सदियाँ याद करती रहेगी हे अभिधान राजेन्द्र कोष के महाप्रणेता! तेरे कालजयी आलेख इतिहास मे सदा अंकित रहेंगे तेरे पावन चरणों में जन-जन के श्रद्धा सुमन सदैव अर्पित होगें अनुभूति एवं दर्शन / 26 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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