Book Title: Anekant 1941 03 Author(s): Jugalkishor Mukhtar Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 5
________________ किरण २] जैनी नीति १२३ एक साथ दोनों हाथोंसे कर्षण-क्रिया न करती हूँ, नहीं कभी मैं एक हाथसे दधिका मन्थन करती हूँ। सहार्पिता अनुभयदृष्टीके करमें जब कढ़नी आती, 'अवक्तव्य हैं सकल वस्तु' तब यह रहस्य वह बतलाती । गोपीके मन्थन - रहस्यसे 'जैननीति' को समझ गया, अनेकान्तका गूढ तत्त्व यों क्षण भरमें ही सुलझ गया ! विध्यनुभयदृष्टीके द्वाराकढ़नी जब खींची जाती, अस्ति-अवाच्यस्वरूप विश्व मेंअर्थ-मालिका हो जाती । 'एकनाकर्षन्ती' नामक अमृतचन्द्र-कृत शुभ गाथाकी सुस्मृतिसे हुआ उसी क्षण उन्नत था मेरा माथा । निषेधानुभयदृष्टि स्वकरमें कढ़नी जब गह लेती है, 'नास्ति-अवाच्यस्वरूप वस्तु है' यह निश्चित कह देती है। अनेकान्तमय - वस्तु - तत्त्वसे भरा हुआ जग-भाण्ड अनूप, स्यावादात्मक मथन-दण्डसे श्रालोडन होता शिवरूप । उभयानुभयदृष्टिके हाथों जब कढ़नी खींची जाती, 'अस्ति-नास्ति अरु अवक्तव्य-मय' सत्स्वरूप तब बतलाती । . ज्ञाताकी सद्बुद्धि-गोपिका क्रमसे मन्थन करती है, नय-माला मन्थाननेत्रको क्रमसे खींचा करती है। 'अनेकान्त' के मुख्य पृष्ठ पर जिसका चित्रण किया गया, जैनी नीति * वही है जिसका उस दिन अनुभव मुझे हुआ। विधि-दृष्टीका दक्षिण कर जब कढ़नीको गह लेता है, 'अस्तिरूप तब सकल वस्तु हैं' यह सिद्धान्त निकलता है। सम्यग्वस्तु-ग्राहिका है यहठीक तत्त्व बतलाती है, वैर-विरोध मिटाकर जगमें शान्ति-सुधा बरसाती है । जीजे. जब निषेध-दृष्टीका बायाँहाथ उसे गह लेता है, 'नास्तिरूप तब सकल वस्तु हैं' यह सिद्धान्त निकलता है । इससे इसका अाराधनकर, जीवन सफल बना लीजे; पद-पद पर इसकी आज्ञाका ही निशिदिन पालन कीजे । उभय-दृष्टि का हस्तयुगल जबक्रमसे कढ़नी गहता है, 'अस्ति-नास्ति-मय सकल वस्तु हैं' यह सिद्धान्त निकलता है । * इस 'जैनी नीति' के विशेष परिचयके लिये देखो 'अनेकान्त' के गत विशेषाङ्कमें प्रकाशित 'चित्रमय जैनी नीति' नामका सम्पादकीय लेख ।Page Navigation
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