Book Title: Anekant 1941 03
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 3
________________ * ॐ अहम् * त्त्व-सघातक विश्व तत्त्व-प्रकाशक नीतिविरोधध्वंसीलोकव्यवहारवर्तकःसम्यक् । परमागमस्य बीज भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः वर्ष ४ किरण २ ( वीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम) सरसावा जिला सहारनपुर चैत्र, वीर निर्वाण सं० २४६७, विक्रम सं० १९६७ माचे १९४१ जिन-प्रतिमा-वन्दन विगतायुध-विक्रिया-विभूषाः प्रकृतिस्थाः कृतिनां जिनेश्वराणाम् । प्रतिमाः प्रतिमागृहेषु कान्स्याऽप्रतिमाः कल्मषशान्तयेऽभिवन्दे ॥ कथयन्ति कषायमुक्ति लक्ष्मी परया शान्ततया भवान्तकानाम् । प्रणमामि विशुद्धये जिनानां प्रतिरूपाण्यभिरूपमूर्तिमन्ति ॥ -चैत्यभक्ति पूतात्मा श्री जिनेन्द्रदेवकी जो प्रतिमाएँ श्रायुधसे रहित हैं, विकारसे वर्जित हैं और विभूषासे-वस्त्रालंकारोंसे-- विहीन हैं तथा अपने प्राकृतिक स्वरूपको लिये हुए प्रतिमागृहोंमें-चैत्यालयोंमें स्थित हैं और असाधारण कान्तिकी धारक हैं, उन सबको मैं पापोंकी शान्ति के लिये अभिवन्दन करता हूँ ॥ संसार-पर्यायका अन्त करने वाले श्री जिनेन्द्रदेवों को ऐसी प्रतिमाएँ, जो अपने मूर्तिमानको अपने में ठीक मूर्तित किये हुए हैं, अपनी परम शान्तताके द्वारा कषायोंकी मुक्तिसे जो लक्ष्मी--अन्तरंग-बहिरंग विभूति अथवा आत्मविकासरूप शोभा उत्पन्न होती है उसे स्पष्ट घोषित करती हैं, अतः अात्मविशुद्धिके लिये मैं उनकी वन्दना करता हूँ-ऐसी निर्विकार, शान्त एवं वीतराग प्रतिमाएँ अात्माके लक्ष्यभूत वीतरागभावको उसमें जाग्रत करने, उसकी भूली हुई निधिकी स्मृति कराने और पापोंसे मुक्ति दिलाकर आत्मविशुद्धि कराने में कारणीभूत होती हैं, इसीसे मुमुक्षुके द्वारा वन्दन, पूजन तथा अाराधन किये जानेके योग्य हैं । उनका यह वन्दन-पूजन वस्तुतः मूर्तिमानका ही वन्दन-पृजन है।

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