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अनेकान्त
[ मार्गशीर्ष, वीर निर्वाण सं०२०६६
५. जैनदर्शने कर्मवाद-प्र०जिनवानी वर्ष १, पृ०२०५ का हिन्दी अनुवाद आपने तैयार भी कर दिया है जो
वर्ष २, पृ० २२ शीघ्र ही प्रकाशित किया जायगा। ६- जैनकथा, ७ संवत ८ अब्द,६ चन्द्रगुप्त-प्र०जिनः भट्टाचार्य अभी एक अत्यन्त उपयोगी ग्रंथ वानी वर्ष १ पृ० ७१-२६८
अंग्रेज़ीमें लिख रहे हैं, जिसमें जैनधर्म सम्बन्धी सभी १० भगवान् पार्श्वनाथ–प्र०जिनवानी वर्ष २,अंक ४, अावश्यक ज्ञातव्यों का समावेश रहेगा। इसके कई पृ० १४१
प्रकरण लिखे भी जा चुके हैं। जैनसमाजका कर्तव्य ११. महामेघवाहन खारखेल-प्र० जिनवानी वर्ष २ है कि इस ग्रन्थको शोध ही पूर्ण तैयार करवाकर 'पृ० ६६
प्रकाशित करे, जिससे एक बड़े अभावकी पति हो १२. जैनदर्शने धर्मश्रो अधर्म-प्र० साहित्यपरिषद्- जाय । - पत्रिका भाग ३४ संख्या २ सन १३३४
२ प्रो०चिन्ताहरण चक्रवर्ती काव्यतीर्थ M.A. १३. प्रमाण-प्र. साहित्य परिषद पत्रिका भाग ३३ Prof. Bethune collegeपृ०१८ से
(पता-नं० २८।३ झानगर रोड, कालीघाट, कलकत्ता) १४. जैनदर्शने आत्मवृत्ति निचय-प्र० साहित्यसंवाद आप भी बहुत उत्साही लेखक हैं । जैनधर्मके ___ इन लेखोंमेंसे कतिपय लेख पहले अंग्रेज़ीमें प्रचारके लिये आपकी महती इच्छा है। संस्कृत-साहिलिखे गये थे फिर उनका बंगानुवाद कर “जिनवाणी" त्यमें दूतकाव्य आदि अनेकों गंभीर अन्वेषणात्मक लेख पत्रिकामें प्रकाशित किये गये थे । “जिनवाणी' आपने लिखे हैं । जैनसाहित्यके प्रचारमें आप बहुत पत्रिकामें प्रकाशित नं० २-३-४-५-६-१०-११-१२ का अच्छा सहयोग देनेकी भावना रखते हैं। आपके लेखोंगुजराती अनुवाद श्रीयुक्त सुशील ने बहुत सरस किया कीसंक्षिप्त सूची इस प्रकार है :है और उसके संग्रहस्वरूप "जिनवाणी" नामक ग्रंथ १. जैनपद्मपुराण-जिनवाणी पत्रिकामें धारावाहिक 'ऊंझा आयुर्वेदिक फार्मेसी अहमदाबाद' से प्रकाशित भी रूपसे प्रकाशित, एवं बंगबिहारधर्मपरिषदसे स्वतन्त्र हो चुका है, इसको जनताने अच्छा अपनाया । इससे ग्रन्थरूपसे प्रकाशित, मूल्य ।)। इस ग्रंथकी द्वितीयावृत्ति भी हो चुकी है।। प्रकाशक आपके इस लेखकी जैन पत्रोंमें बड़ी प्रशंसा हुई महाशयने भी प्रचारार्थ २६० पृष्ठ के सजिल्द ग्रन्थ थी व शोलापुर के दि० पं० जिनदास पार्श्वनाथ का मूल्य केवल ॥) ही रखा है।
शास्त्री जीने इसका मराठी अनुवाद भी प्रगट हिन्दी-भाषा-भाषी भी भट्टाचार्य के गंभीर लेखोंके किया था । अध्ययनसे वंचित न रहें, अतः मैंने इन लेखोंका २. जैनपुराणे श्रीकृष्ण-जिनवानी वर्ष २, अंक १ में हिन्दी अनुवाद भी करवाना प्रारम्भ कर दिया है। प्रकाशित व उक्त परिषदद्वारा स्वतन्त्र रूपसे दो सिलहट-निवासी जैनधर्मानुरागी रामेश्वरजी बाज- फरमा अपूर्ण मुद्रित । । पेई ने मेरे इस कार्य में सहयोग देनेका वचन दिया ३. जैन त्रिरत्न-"भारतवर्ष" नामक प्रसिद्ध बंगीय है और "भारतीय दर्शनोंमें जैन दर्शनका स्थान" लेख मासिकपत्रमें प्रकाशित अग्राहयन सं० १३३१