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अनेकान्त
रिक्त पाश्चात्य दर्शनोंके सम्बन्ध में श्रापका ज्ञान बहुत विशाल है area पका लेखन तुलनात्मक र तलस्पर्शी होता है । आपके लिखे हुए भारतीय दर्शनसमूहे जैनदर्शनेर स्थान, ईश्वर, जीव, कर्म, षड्द्रव्यधर्म धर्म, पुद्गल, काल, आकाश इत्यादि निबंध इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं । आपके इन निबन्धोंमेंसे प्रथम निबंधका गुजराती अनुवाद जब मेरे अवलोकनमें श्राया तभीसे आपसे मिलकर आपके लिखे अन्य सब निबंधोंको प्राप्त करनेकी उत्कंठा हुई; पर पता ज्ञात न होनेसे वैसा शीघ्र ही न बन सका । बहुत प्रयत्न करने पर बाबू छोटेलालजी जैनसे आपका पता ज्ञात हुआ और मैं बाबू हरषचन्द्रजी बोथराके साथ आपसे मिला । वार्त्तालाप होनेपर ज्ञात हुआ कि क़रीब २५ वर्ष पूर्वसे प जैन ग्रंथों का अध्ययन व लेखन कार्य कर रहे हैं, पर उनके लिखित ग्रंथोंके प्रकाशनकी कोई सुव्यवस्था न होने से इधर कई वर्षोंसे उन्हें लिखना बंद कर देना पड़ा। जैन समाज के लिये यह कितने दुखका विषय है कि ऐसे तुलनात्मक गंभीर लेखकको प्रकाशन - प्रबन्ध न होनेसे लिखना बंद करना पड़ा, निरुत्साह होना पड़ा ! भट्टाचार्यजी से वार्तालाप होनेपर ज्ञात हुआ कि उनको जैनधर्म के प्रति हार्दिक आदर व भक्ति भाव है, उन्होंने यहाँ तक कहा कि यदि प्रबन्ध किया जा सके तो मेरा विचार तो पाश्चात्य देशोंमें घूम घूमकर जैनधर्मके प्रचार करने का है । एक बंगाली विद्वानके इतने उच्च हार्दिक विचार सुनकर किसे आनन्द न होगा ? मेरे हृदय में तो हमारे समाजकी उपेक्षाको स्मरण कर बड़ी ही गहरी चोट पहुँची । क्या जैनसमाज अब भी आँखें नहीं खोलेगा ?
श्रीयुत भट्टाचार्यजी के तलस्पर्शी गहन अध्ययन व लेखन के विषय में पं० सुखलाल जीने “जिनवाणी" ग्रंथके
[मार्गशीर्ष, वीर निर्वाण सं० २४६६
निदर्शनमें जो उद्गार प्रगट किये हैं उनमें से श्रावश्यक अंश नीचे उद्धृत किया जाता है
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"श्रीयुक्त हरिसत्य भट्टाचार्य घणां वर्ष अगाऊ चोरीएटल कॉन्फरेन्सना प्रथम अधिवेशन प्रसंगे पूनामां मलेलातेवखतेज तेमना परिचयथी मारा उपर एटली छाप पडेली के एक बंगाली अने ते पण जैनेतर होवाछताँ जैनसाहित्य विषे जे अनन्य रस धरावे छे ते नवयुगनी जिज्ञासानुं जीवतुं प्रमाण छे । तेमणे "रत्नाकरावतारिका" नो अँग्रेज़ी करेलो तेने तपासी अने छपावी देवो एवी एमनी इच्छा हती, ए अनुवाद मे छपावी तो न शक्या पण मारी एटली खात्री थइ के भट्टाचार्यजीए अनुवाद माँ खूब महेनत करी छे। अने ते द्वारा तेमने जैनशास्त्रमा हृदयनो स्पर्श करवानी एक सरस तक मली छे । त्यारबाद एटलो वर्षे ज्यारे तेमना बंगाली लेखोना अनुवादों में वांच्यां त्यारे ते वखते भट्टाचार्यजी विषे मैं जे धारणा बांधेली ते वधारे पाक्की थई ने साची पण सिद्ध थइ | श्रीयुक्त भट्टाचार्यजी ए जैनशास्त्र नु वांचन ने परिशीलन लांबा बखत लगी चलावेलु ऐना परिपाक रूपेज तेमना आ लेखो छे एम कहवु जोइए, जन्म ने वातावरण थी जैनेतर होवाछतां तेमना लेखो माँ जे अनेकविध जैन विगतो नी यथार्थ माहितीछे अने जैन विचारसरणीनो जे वास्तदिक स्पर्श छे, ते तेमना अभ्यासी अने चोकसाइ प्रधान मानसनी साबीती पुरी पाडे छे । पूर्वीय तेमज़ पश्चिमीय तत्त्वाचिंतननु विशालवाचन एमनी M. A. डीग्रीने शोभावे तेवु छे अने एमनु दलिलपूर्वक निरुपण एमनी वकीली वुद्धिनी साक्षी श्रापेछे । भट्टाचार्य जीनी या सेवामात्र जैन जनता मांज नहीं परन्तु जैनदर्शनना जिज्ञासु जैन-जैनेतर सामान्य जगत मां चिरस्मरणीय बनी रहथे ।