Book Title: Anekant 1939 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 40
________________ १७८ अनेकान्त [मार्गशीर्ष, वीरनिर्वाण सं० २४६६ सकता है। शास्त्र-श्रवणका भी प्रत्येकको समान अधि- तर्कोका प्रबल खण्डन किया । दिङ नागादि पश्चात्वर्ती कार है; आदि आदि । इन कारणोंसे जनता वैदिक- बौद्ध तार्किकोंने इस विषयको और भी आगे बढ़ाया धर्मकी छत्र-छायाका त्याग करके जैनधर्म और बौद्ध- और इस प्रकार इस तर्क शास्त्रीय युद्धकी गंभीर नींव धर्मकी छत्र छायाके नीचे तेजीसे आने लग गई थी। डाल कर अपने प्रतिपक्षियोंको. चिर-काल तक विवश श्रमण संस्कृति (जैन और बौद्ध संस्कृतिका सम्मिलित किया साथ ही भारतीय तर्क- शास्त्रकी भव्य इमारतका नाम) ने थोड़े ही समयमें जनताके बल पर राजा महा- कला-पूर्ण निर्माण किया। राजाओंके शासन-चक्र तकको भी अपना अनुयायी इस तर्क-युद्ध में जैनेतर तार्किक विद्वान् जैन-दर्शन बना लेनेकी शक्ति प्राप्त कर ली थी। पर भी छींटे उछालने लगे और भगवान् महावीर स्वामी ___ इस प्रकार श्रमण-संस्कृतिके क्रियात्मक प्रभावको द्वारा प्रतिपादित धर्मका उपहास करने लगे; तब जैनदेखकर गौतम आदि वैदिक विद्वानोंने इस प्रभावका विद्वानोंको भी जैनधर्मकी रक्षा करनेकी चिन्ता सताने निराकरण करनेका विचार किया और इस प्रकार यह लगी। इन्होंने सोचा कि अब केवल "आगमों" पर विचार ही तर्क शास्त्रकी उत्पत्तिका मूल कारण हुअा। निर्भर रहनेसे ही कार्य नहीं चलेगा और न केवल भारतीय तर्क-शास्त्रका अपर नाम न्याय-शास्त्र भी 'आगम-रक्षा' से 'जिन-शासन' की रक्षा हो सकेगी। है । इसका कारण यह है कि इस शास्त्रके आदि इसलिये जिस प्रकार बौद्ध-विद्वानोंने सम्पूर्ण बौद्धश्राचार्य महर्षि गौतम द्वारा रचित तर्क-शास्त्रके आदि साहित्यकी विवेचना और रक्षाका अाधार 'शून्यवाद' ग्रंथका नाम न्याय-सूत्र है और इसीलिये प्रत्येक दर्शनका निर्धारित किया; उसी प्रकार इन विद्वान् साधुअोंने भी तर्क-शास्त्र "न्याय-शास्त्र" के नामसे भी विख्यात हो जैन-साहित्यकी विवेचना और रक्षका अाधार 'स्याद्वादगया है; जैसे कि सांख्य न्याय, बौद्ध न्याय, जैन-न्याय सिद्धान्त' रक्खा । बौद्ध और जैन-न्याय साहित्य-रूप इत्यादि। भवनकी अाधार शिलाका संस्थापन जिन कारणोंसे हुआ है, उनका यह संक्षिप्त दिग्दर्शन समझना चाहिये। बौद्ध और जैन न्याय-शास्त्र तर्क-शास्त्रकी उत्पत्ति और विकासके कारणोंको जब बौद्ध विद्वानोंको महर्षि गौतमकी इस रहस्यमय जान लेनेके बाद यह जानना आवश्यक है कि धर्म, नीतिका पता चला तो उन्होंने भी तार्किक प्रणालीका दर्शन और तर्ककी परिभाषा क्या है ? मुख्यतया क्रियाश्राश्रय लिया । बौद्ध-तार्किकोंमें सर्वप्रथम और प्रधान त्मक चारित्रका नाम धर्म है, द्रव्यानुयोग सम्बन्धी ज्ञानश्राचार्य नागार्जुन हुआ । इनका काल ईसाकी दूसरी को 'दर्शन' कहते हैं और दर्शनरूप ज्ञान के सम्बन्धमें शताब्दी है । ये महान् प्रतिभाशाली और प्रचण्ड ऊहापोह करना, भिन्न भिन्न रीतिसे विश्लेषण करना तार्किक थे । इन्होंने 'माध्यमिक-कारिका" नामक तर्कका 'तर्क' अथवा 'न्याय' है । प्रौढ़ और गंभीर ग्रंथ बनाया, एवं बौद्ध-साहित्यका मूल यद्यपि श्वे. जैन-न्याय-साहित्यका प्रारम्भ सिद्धसेन अाधार “शून्यवाद" निर्धारित किया। इसके अाधार दिवाकरके कालसे ही हुआ है। फिर भी जैन न्यायका पर वैदिक मान्यताअोंका और वैदिक-मान्यतानुकूल मूल बीज विक्रमकी प्रथम शताब्दिमें होने वाले, संस्कृत

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