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अनेकान्त
[मार्गशीर्ष, वीर निर्वाण सं०२४६६
हो जाने पर, अथवा यों कहें कि कच्चा माल पक्का मातृहत्याकारी ब्राह्मण परशुराम, नारीहरणकारी ब्राह्मण बन जाने पर, वह झबुओंके कुचक्र के पटारेमें भर लिया रावण, कुकुरका मांस भक्षण करनेकी इच्छा करनेवाले जाता है और फिर व्यावहारिक संसारमें उसका कोई महषि विश्वामित्र, शुक्राचार्यको ठगनेवाले जैनमत-प्रचारक अस्तित्व ही नहीं रह जाता।
देवगुरु बृहस्पति * प्रजापीडक नहुष और वेन, पत्नीकी बुद्धिहत्याके कारखानेकी कलिकल्पनाकी मशीन सदा फटकार सुननेवाले द्रोण, स्त्रीलम्पट दशरथ, बड़ी ही भयानक है और उसका प्रभाव भी असाधारण सपत्नियोंसे वैर करनेवास्त्री केकयी, चन्द्रमासे पुत्र उत्पन्न है। उसके महात्म्यका झब्बुओंने पहलेसे ही ऐसा वर्णन करनेवाली गुरुपत्री तारा, अर्थलोलुप ब्रह्मण धन्वन्तरी, कर रक्खा है कि, जिसका कोई ठिकाना नहीं । जब कन्यापर प्रासक्त होनेवाले ब्रह्मा, पतोहूपर रीझनेवाले कलिकालका यन्त्र अपने पूरे वेगसे चलने लगेगा, तब वसिष्ठ और अग्निसे गर्भ धारण करनेवाली ऋषिपत्नियों सब वर्ण शूद्र हो जायेंगे, ब्राह्मण धर्म कर्म छोड़ देंगे, तथा एकसे अधिक पति करनेवाली और कौमार्यावस्था गायें दूध और भूमि अन्न महीं देगी, मेघ यथासमय तथा वैधव्यावस्थामें सन्तानोत्पत्ति करनेवाली कितमीही नहीं बरसेंगे, पतिव्रताएँ भ्रष्ट हो जायंगी, पुरुष स्त्रियों के जीवनचरित्र लिख मारे हैं;जो उन्हींके मतानुसार स्त्री-जित,लम्पट और पर स्त्री .गामी होंगे, ब्राह्मणत्वका कलियुगके नहीं है। उल्कापात, वज्रपात और साठ २ चिन्ह जनेऊभर रह जायगा, धर्मवक्ता और साधु ढोंगी हजार वर्षों के अवर्षणोंकी बातें तो जहाँ तहाँ लिखी पाखण्डी-होंगे, राजा प्रजाको पीस डालेगा, पुत्र पिता मिलती हैं । उस समय पृथ्वी तो बात बातमें डोल की बात नहीं मानेगा, पति पत्नीमें प्रेम नहीं रहेगा, जाती और गौ बनकर ब्रह्माके पास भागती थी। यशपुत्र अपनी मातासे स्त्रीकी सेवा करावेगा, विषयसुख हो प्रसंगमें मद्य मांसके लिये देवता लड़ जाते थे और सभी प्रधान सुख माना जायगा, कामीलोग बहन बेटीका भी लोग भेड़, बकरे, सूअर, बछड़े, सांड़, गाय, घोड़े, गेंडे, विचार नहीं करेंगे, अर्थप्राप्ति ही पुरुषार्थ हो रहेगा, खच्चरतक मार मारकर खा पचा डालते थे । कलिवर्णनके भाई भाई एक दूसरेको छाती पर चढ़ेंगे । भाई-बहनों, लेखककी ही बात सही मान ली जाय, सो यही कहना देवरानी-जेठानियों और ननद-भौजाइयोंमें अनबन पड़ेगा कि अन्य युगोंकी अपेक्षा कलियुगमें ही सभ्यता रहेगी, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, वज्रपात, अग्निदाह, रोग, का अधिक विकास हुआ है। भूकम्प आदि उत्पात बारबार होंगे, देवों ब्रह्मणों और वेदाङ्ग ज्योतिषने पांच वर्षका एक युग माना है; साधुओंको कोई नहीं मानेगा, सब लोग पापी और परन्तु झब्बुओंने लाखों वर्षों के युग बना डाले हैं । उनके अल्पायु होंगे, सभी मनुष्य अँगूठे के बराबर हो जायेंगे, हिसाबसे चार लाख बत्तीस हज़ार वर्षों का कलियुग है । धर्मका नामतक नहीं रहेगा मोक्षका विचार उठ जायगा जब तक वह रहेगा तबतक उनकी वर्णित परिस्थिति ही
और अधर्म बढ़कर संसार उच्छिन्न हो जायगा इत्यादि। * इस कथनमें जैनमत प्रचारक, यह विशेषण मानों ये सब बातें अन्य युगों में हुई ही नहीं। समझकी किसी ग़लती अथवा भूलका परिणाम जान
आश्चर्य तो यह है कि, कलिकालका भविष्य कथन पड़ता है; क्योंकि देवगुरु बृहस्पति जैनमत के कोई करनेवाले लेखकने ही ब्राह्मण वृत्रका वध करनेवाले इन्द्र . प्रचारक नहीं हुए हैं।
-सम्पादक