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भनेकान्त...
[मार्गशीर्ष, वीरनिर्वाण सं०२४६६
जी ने बहुधा रबड़की तरह खींच खांचकर पद्योंका कुछ तलप्रसाद । प्रकाशक, मूलचन्द किसनदास कापड़िया, अर्थ बिठलाया है । उसका अन्वयार्थ, भावार्थ और मालिक दिगम्बर जैन पुस्तकालय, सूरत । पृष्ठ संख्या, विशेषार्थ तक लिखा है और इस तरह पुस्तक कुछ सब मिलाकर १७६ । मूल्य, १) रु.। .. पढ़ने योग्य हो गई है, जिसका श्रेय ब्रह्मचारीजीको है। इस पुस्तका विषय उसके नामसे ही प्रकट है । अन्यथा पुस्तक कोई खास महत्वकी मालूम नहीं होती इसमें अनेक जैन ग्रन्थोंपरसे कुछ वाक्योंको लेकर उन्हें और न विद्वानोंकी उसके पढ़नेमें रुचि ही हो सकती भावार्थ सहित दिया है । और यह बतलानेकी चेष्टा की है । अस्तु; यह पुस्तक जैन मित्रके ग्राहकोंको उपहारमें गई है कि "जैन धर्मको पालनेवाले सर्वगृहस्थी भले दी गई है और अलग मूल्यसे भी मिलती है । ब्रह्मचारी प्रकार राज्यशासन, व्यवहार, परदेशयात्रा, कारीगरीके जी तारणतरण स्वामीके साहित्यका उद्धार करनेमें लगे काम व खेती आदि कर सकते हैं व श्रावकके व्रतोंको हुए हैं। इससे पहले तारणतरण श्रावकाचार आदि भी पाल सकते हैं। साथ ही, इसमें अजैन ग्रन्थोंके
और भी पांच ग्रंथ अनुवादित होकर प्रकाशित हो चुके कुछ प्रमाण भी अहिंसाकी पुष्टि में दिये गये हैं। पुस्तक हैं। खेद है ब्रह्मचारी जी इस साहित्यकी भाषा पर कोई ११ अध्यायोंमें बटी हुई होनेपर भी किसी अच्छे व्यवप्रकाश नहीं डाल रहे हैं, जिसका डालना अनुवादके स्थित विषयक्रमको लिये हुए नहीं हैं । विषय-विवेचन समय साहित्यकी ऐसी विचित्र स्थिति होते हुए श्राव- और कथनका ढंग भी बहुत कुछ साधारण है। छपाईश्यक था।
... सफ़ाई तो और भी मामूली है । इतनेपर भी यह पुस्तक ___ ग्रन्थका नाम 'त्रिभंगीदल प्रोक्त' इस प्रतिज्ञा-वाक्य महात्मागाँधीजीको समर्पित की गई है। मूल्य १) रु० परसे 'त्रिभंगीदल' तो उपलब्ध होता है परन्तु 'त्रिभंगी- अधिक है। ऐसी पुस्तकका मूल्य चार-छह आने होना नामकी उपलब्धि नहीं होती। सम्भव है ब्रह्मचारी जी चाहिये था । जैन मित्रके ग्राहकोंको यह पुस्तक ला. के द्वारा ही नामका यह संस्कार अथवा सुधार किया रोशनलालजी जैन बी. ए. फीरोजपुरकी अोरसे अपने गया है।
पूज्य पिता ला• लालमनजीकी स्मृतिमें जिनका सचित्र (४) जैनधर्ममें अहिंसा-लेखक, ब्रह्मचारी शी- जीवन चरित भी साथमें लगा है, भेंटमें दी गई है।