Book Title: Anekant 1939 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 63
________________ वर्ष ३, किरण २] . .. साहित्य-परिचय और समालोचन गाथाएँ ऐसी हैं जो गोम्मटसारमें भी प्रायः ज्यों की त्यों चित्र, चित्र-परिचय सहित देकर ७ पेजका प्राकथन, और कहीं कहीं कुछ पाठ-भेदके साथ पाई जाती हैं और ४ पेजमें अंग्रेजी प्रस्तावना और फिर ८८ पृष्ठकी हिन्दी जो किसी प्राचीन ग्रंथ–संभवतः पंचसंग्रह प्राकृत- प्रस्तावना दी है । साथ, प्राक्कथनके बाद एक पेजकी परसे उद्धृतकी गई हैं । बाकी १०४ के करीब संस्कृत- विषय-सूची भी दी है, जो कि फोटो-चित्रोंसे भी पहले दी प्राकृतके पद्य भी दूसरे ग्रंथों पर से उद्धृत किये गये जानी चाहिये थी; क्योंकि सूचीमें फोटो चित्र तथा प्राकहैं । और इस तरह ग्रंथमें प्रस्तुत विषयका अच्छा थनको भी विषयरूपसे दिया गया है । प्राक्कथनादि तीनों सप्रमाण विवेचन किया गया है। निबन्ध प्रो० हीगलालजीके लिखे हुए हैं । उनके बाद ___मूल ग्रन्थ और उसकी 'धवला' टीकाका हिन्दी दो पेज की संकेत सूची, तीन पेजकी सत्प्ररूपणाकी अनुवाद भी प्रत्येक पृष्ट पर साथ साथ दिया गया है। विषय-सूची, एक पेजका शुद्धि पत्र, एक पेजका परन्तु अनुवादक कौन हैं यह ग्रंथ भरमें कहीं भी स्पष्ट सत्प्ररूपणाका मुखपृष्ठ, और फिर एक पेजका मंगलासूचित नहीं किया गया। जान पड़ता है जिन पं० चरण दिया है । सत्प्ररूपणाकी जो विषय-सूची दी है हीरालालजी शास्त्री और पं० फूलचन्दजी शास्त्रीके वह केवल सत्प्ररूपणाकी न होकर उसके पूर्वके १५८ सहयोगसे ग्रंथका सम्पादन हुअा हैं और जिन्हें ग्रंथके पृष्ठोंकी भी विषय-सूची है । अच्छा होता यदि उसे मुख पृष्ठ पर 'सहसम्पादकौ' लिखा है उन्हींके विशेष जीवस्थानके प्रथम अंशकी विषय-सूची लिखा जाता । सहयोगसे ग्रंथका अनुवाद कार्य हुअा है। अनुवादके और सत्-प्ररूपणाका जो मुख पृष्ठ दिया है उस पर अतिरिक्त फुटनोट्स के रूपमें टिप्पणियाँ लगानेका जो सत्प्ररूपणाकी जगह 'जीवस्थान प्रथम अंश' ऐसा लिखा महत्वपूर्ण कार्य हुअा है उसमें भी उक्त दोनों विद्वानों जाता। क्योंकि षट् खण्डागमका पहला खण्ड जीव. का प्रधान हाथ जान पड़ता है । टिप्पणियोंमें अधि- स्थान है, उसीका णमोकारमंत्र मंगलाचरण है, न कि कांश तुलना श्वेताम्बर ग्रंथों परसे की गई है। अच्छा सत्प्ररूपणा का। . होता यदि इस कार्यमें दिगम्बर ग्रंथोंका और भी ग्रन्थके अन्तमें ६ परिशिष्ट दिये हैं जिनके नाम अधिकताके साथ उपयोग किया जाता । इससे तुलना- इस प्रकार हैं:कार्य और भी अधिक प्रशस्तरूपसे सम्पन्न होता। १ संत-प्ररूपणा-सुत्ताणि, २ अवतरण-गाथा-सूची, अस्तु; अनुवादको पढ़कर जाँचनेका अभी तक मुझे ३ ऐतिहासिक नाम सूची, ४ भौगोलिक नाम सूची, कोई अवसर नहीं मिल सका, इसलिये उसके विषयमें ५ ग्रन्थनामोल्लेख, ६ वंशनामोल्लेख, ७ प्रतियोंके पाठमैं अभी विशेषरूपसे कुछ भी कहनेके लिये असमर्थ हूँ भेद, ८ प्रतियोंमें छूटे हुए पाठ, ६ विशेष टिप्पण। परन्तु सामान्यावलोकनसे वह प्रायः अच्छा ही जान प्रस्तावनामें-१ श्री धवलादि सिद्धान्तोंके प्रकाशमें पड़ता है। . आनेका इतिहास, २ हमारी आदर्श प्रतियां, ३ पाठ___ ग्रंथके शुरूमें अमरावती, श्रारा और कारंजाकी संशोधनके नियम, ४ षड् खण्डागमके रचयिता, ५ प्रतियोंके फोटो चित्र और ग्रन्थोद्धारमें सहायक सेठ प्राचार्य-परम्परा, ६ वीर निर्वाणकाल, ७ षट् खण्डाहीराचन्द, सेठ माणिकचन्द जी आदि ७ महानुभावोंके गमकी टीका धवलाके रचयिता, ८ धवलासे पूर्वके

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