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बंगीय विद्वानोंकी जैन - साहित्य में प्रगति
३. किरण २ ]
भट्टाचार्यजीके लिखित ग्रन्थों व लेखों की सूची नीचे दी जाती है :
अनुवादित
१ प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकारटीका "रत्नाकरावतारिका" का अंग्रेजी अनुवाद—
मूल ग्रन्थ श्वेताम्बर न्यायग्रन्थों में प्रमुख ग्रंथोंमें से एक है। इसकी टीका बड़ी ही विचित्र एवं कठिन है, अंग्रेजीमें उसका अनुवाद करना कोई साधारण काम नहीं है। इस अनुवाद में भट्टाचार्यजीका दर्शनशास्त्र, संस्कृत एवं अंग्रेजी भाषा पर असाधारण अधिकार स्पष्ट है | बहुत वर्ष पहले प्रस्तुत अनुवाद " जैनगज़ट " में धारावाहिक रूपसे बहुत समय तक निकला था । अब आपका उसे पुनः शुद्धि और वृद्धि कर स्वतंत्र ग्रंथरूपसे प्रकाशन करनेका विचार है, पाश्चात्य दर्शन के साथ समन्वय-सूचक व तुलनात्मक टिप्पणियें आप शीघ्र ही लिखेंगे । सिंघी- ग्रन्थमालासे उसके प्रकाशनका प्रबन्ध कर भट्टाचार्य जीके उत्साहको बढ़ानेका श्रीमान् बहादुरसिंह जी सिंघी व मुनि जिनविजय जीसे अनुरोध है ।
मौलिक रचनाएँ
पृ० ३८
२. Lord Mahavira
३. Lord Parsva पृ० ४०
४. Lord Arishta nemi पृ० ६०
प्रकाशक “जैन मित्रमंडल, देहली ।" प्रकाशन स १९२६ - १६२८ - १६२६
५. Divinity in Jainism ( जैनगज़ट मद्रास से प्रकाशित )
. A comparative Study in Indian
१५१
science of thoughts from the Jain stand point; (प्रका • The Indian Philosphy and religion, page 129-136) ७. The Jain Theory of space ( प्रका० उप
युक्त पृ० ११५ से १२० जैनगज़ट फरवरी १६२७) ८. The theory of Time in Jain Philo• sophy पृ० १० (जैनगजट १६२७ फरवरी) E.Ancient concepts of matter:- Review of philosophy and religion V. III N.I. P. 13 (जैनगजट मार्च से दिसम्बर १९३०) १०. First principles of Indian Ethical
systems:-The Philosophical Quar - terly P. 308-314
११. The message of Mahavira and Krishna Vir 1929:– पृ० ७१-७६ १२. A comparative study of the Indi
an Doctrine of non-soul from the Jain standpoint. (To The Indian philosophical congress page 129136)
बंगला भाषा में
१. पुरुषार्थसिद्धिउपाय
अनुवाद - प्र० बंग-विहार अहिंसा धर्मपरिषद्, पूर्ण मुद्रित एवं जिनवाणी वर्ष २, पृ०६५-१०६
२. भारतीय दर्शनसमूहे जैनदर्शनेर स्थान, प्र० जिनवाणी वर्ष १, पृ०८
३. (जैनदृष्टिए) ईश्वर—प्र० जिनवाणी वर्ष १,१०२५४ ४. जीव - प्र० जिनवाणी वर्ष १, पृ० १२६ वर्ष २, प० १०६