Book Title: Aling Grahan Pravachan
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 18
________________ पहला बोल नहीं मानता है, अतः उसको चैतन्य का अवलंबन नहीं है। इसप्रकार जो जीव स्व की पर्याय को स्वतंत्र नहीं मानता है, उसे परपदार्थों की पर्यायें स्वतंत्र देखने की शक्ति विकसित नहीं होती है। ___ अज्ञानी उल्टी मान्यता करें तो भी वस्तु का स्वभाव परिवर्तित नहीं होता है; परन्तु वह अपनी मान्यता में दोष उत्पन्न करके दुःखी होता है। 'वर्तमान पर्याय का यथार्थ ज्ञान किया' यह कब कहलाएगा? 'स्व तथा परपदार्थों की वर्तमान अवस्था का सच्चा ज्ञान किया' यह कब कहलाएगा ? जब उस-उस पदार्थ का स्वभाव जाने तो जो जीव अपना ज्ञान अपने ज्ञाता स्वभाव के आश्रय से होता है; परन्तु इंद्रियों के तथा परपदार्थों के अवलंबन से नहीं होता, ऐसा मानता है, वह जीव परपदार्थों की पर्यायों को भी उनके द्रव्य के आश्रय से (उत्पन्न) हुई मानता है; परन्तु अन्य के आश्रय से (उत्पन्न) हुई नहीं मानता है । इसप्रकार मानकर ऐसा निर्णय करता है कि मोटर चलने के काल में अपने कारण से चलती है और रुकने के काल में अपने कारण रुकती है। पेट्रोल के साथ मोटर का संबंध नहीं है। लकड़ी अपने कारण ऊँची-नीची होती है, जीव से नहीं होती। विद्यार्थी के पढ़ने की पर्याय विद्यार्थी के कारण है, शिक्षक के कारण नहीं। वे - वे पर्यायें अपने-अपने द्रव्य के आश्रय से होती हैं, पर्याय पर्यायवान की है, वह अन्य के कारण नहीं है। निगोद से लेकर सभी जीव अपने आत्मा से जानते हैं; परन्तु इन्द्रियों से नहीं जानते। एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय जीवों के आंखें नहीं हैं; अत: वे देख नहीं सकते हैं और चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीवों के आंखें हैं; अत: वे देख सकते हैं; यह बात मिथ्या है। .. ज्ञान का उघाड़ पर के आश्रय से नहीं है; उसीप्रकार वह पर में से नहीं आता है । वह ज्ञान की पर्याय पर्यायवान द्रव्य में से आती है। क्या आत्मा किसी भी समय अपने जानने-देखने के स्वभाव से रहित है कि वह इन्द्रियों द्वारा जाने? कभी नहीं। निगोद में भी अपना स्वभाव विद्यमान है; वहाँ भी स्वयं से जानता है । इसप्रकार पर्याय पर्यायवान की है, ऐसा निर्णय करे तो 'वर्तमान पर्याय का सच्चा ज्ञान किया' कहलाता है। .

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