Book Title: Aling Grahan Pravachan
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 33
________________ अलिंगग्रहण प्रवचन इसीप्रकार आचार्य भगवान ने 'तू जान' ऐसा कहा है तो उनको विश्वास है कि मैं कहता हूँ वैसे आत्मा को जाननेवाले जीव भी हैं । भविष्य में होनेवाले जीव जैसा आत्मा मैं कहता हूँ, वैसा नहीं जानेंगे तो? ऐसी उनको शंका ही नहीं होती। यह बात बहुत सूक्ष्म है और कठिन है, इसलिये ज्ञात नहीं होगी, ऐसा नहीं है। अतः तू जान सकता ही है; ऐसा तू विश्वास कर। आत्मा स्वतत्त्व है, वह परतत्त्व द्वारा नहीं जानता है, परतत्त्व द्वारा ज्ञात नहीं होता है, उसीप्रकार परतत्त्व के अनुमान द्वारा भी ज्ञात नहीं होता, परन्तु स्वतत्त्व से ही जानता है और ज्ञात होता है; ऐसा तू जान। बोल ४ : केवल अनुमान से ही ज्ञात हो, ऐसा आत्मा नहीं है। ऐसा तू जान। ___ अन्य जीव मात्र अनुमान करें और आत्मा ज्ञात हो; ऐसा आत्मा नहीं है। अन्य (जीव) केवल अनुमानज्ञान से निर्णय करें कि यह आत्मा ऐसा है तो वह आत्मा का ज्ञान सच्चा नहीं है। राग रहित ज्ञानानंद शुद्ध चैतन्य हूँ', इसके भान द्वारा - स्वसंवेदनज्ञान द्वारा आत्मा ज्ञात हो, ऐसा है। पंच परमेष्ठी भगवान मात्र अनुमान से ज्ञात नहीं होते। ___ अन्य जीव मात्र अनुमान करते हैं और कहते हैं कि ये वीतरागदेव हैं, ये निग्रंथ गुरु हैं तो इसप्रकार से परीक्षा नहीं हो सकती है। ऐसा तू जान । सर्वज्ञ देवाधिदेव, अरहंत तथा सिद्ध और आचार्य, उपाध्याय, मुनि आदि के आत्मा को जानना हो तो मात्र अनुमान द्वारा ज्ञात हो सके, ऐसा वह आत्मा ही नहीं है। __ हीरे की दुकान पर दो पैसे लेकर जावे तो हीरा-मणिक नहीं मिलता और कोई भिखारी भीख मांगे तो उसे लड्डुओं का चूरा मिलता है; परन्तु पूरा लड्डू नहीं मिलता है। पूरा लड्डू मांगने का उसका साहस भी नहीं होता है। उसीप्रकार घर की ऋद्धि, सिद्धि, हीरे आदि हमें दिखाओ ऐसा कहने का साहस भी उसमें नहीं होता है। उसीप्रकार मात्र अनुमानज्ञान भिखारी जैसा है, उसके द्वारा हीरे सदृश पंचपरमेष्ठी के आत्माओं की परीक्षा नहीं हो सकती है। जिसप्रकार भिखारी

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