Book Title: Aling Grahan Pravachan
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 46
________________ सातवाँ बोल ३७ साधकदशा में निश्चय के साथ व्यवहार होता है और उस समय सच्चे देव-शास्त्र-गुरु का लक्ष होता है; परन्तु कुदेव - कुगुरु-कुशास्त्र को मानने का लक्ष ही नहीं होता है। सच्चे देव - शास्त्र - गुरु हैं, अतः शुभराग होता है, ऐसा नहीं है; परन्तु निश्चय के भानसहित जीवों को रागयुक्तदशा होने पर राग का तथा सच्चे देव-शास्त्र-गुरु का निमित्त - नैमित्तिक सम्बन्ध बतलाया है। प्रश्न : सच्चे देव-शास्त्र-गुरु को मानने का शुभरागरूप व्यवहार भी बंध का कारण है और कुदेव आदि को मानने का अशुभरागरूप व्यवहार भी बंध का कारण है तो दोनों व्यवहार में कोई अन्तर रहता है या नहीं? शुभराग तथा सच्चे देव - शास्त्र - गुरु का निमित्त नैमित्तिक संबंध है। उत्तर : हां, दोनों प्रकार का राग निरर्थक ही है, दोनों बंध का कारण है, आत्मा को किसी भी राग से मोक्षमार्ग का धर्म नहीं होता है। जिसप्रकार पानी पानी के आधार से है तो भी पानी भरने के लिये घड़ा होता है; परन्तु कोई कपड़े में पानी नहीं भरता है, ऐसा वहाँ निमित्त का सुमेल है; उसीप्रकार सच्चे देवशास्त्र - गुरु संबंधी शुभराग और कुदेव- कुशास्त्र - कुगुरु संबंधी अशुभराग - दोनों राग चैतन्य की जाति के लिये निरर्थक हैं, दोनों बंध के कारण हैं; तो भी साधक जीव को शुभराग के समय सच्चे देव - शास्त्र - गुरु ही निमित्तरूप होते हैं | शुभरा होता है, अतः सच्चे देंव- गुरु को आना पड़ता है, ऐसा नहीं है। सच्चे देव - गुरु हैं, इसलिये शुभराग हुआ है; ऐसा भी नहीं है तो भी शुभराग में सच्चे देव- गुरु ही निमित्त होते हैं, अन्य नहीं होते - ऐसा सुमेल है। ज्ञान उपयोग को शुभराग का अवलंबन नहीं है। यहाँ तो विशेष यह कहना है कि विकल्पवाली दशा में राग होने पर भी धर्मात्मा जीव के ज्ञान उपयोग को राग का अवलंबन नहीं है। उस समय भी स्वयं का ज्ञाता- दृष्टा स्वभाव है, उसका ही उपयोग अवलंबन करता है। राग भी ज्ञेय है और उस ज्ञेय का ज्ञान में सदाकाल अभाव है, अतः उपयोग रागरहित है।

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