Book Title: Aling Grahan Pravachan
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 91
________________ अलिंगग्रहण प्रवचन ८२ के आधार से कहो तो निरपेक्षपना स्वतन्त्र नहीं रहता है। तथा शुद्ध पर्याय में त्रिकाली सामान्यज्ञान का अभाव है अर्थात् विशेष में सामान्य का अभाव है। अभाव किनमें बतलाया जाता है ? दो अंश वर्तमान में हों, उनमें अभाव बतलाया जाता है । जो वह अस्तिरूप वस्तु ही नहीं हो तो अभाव नहीं बताया जा सकता है। जिसप्रकार १८वें बोल में कहा था कि द्रव्य अभेद है, उसीसमय ज्ञानादि गुणभेद है तो सही; किन्तु अभेदस्वभाव में ज्ञानादि गुणभेद का अभाव है; अतः द्रव्य ज्ञान को स्पर्श नहीं करता है । १९ वें बोल में कहा था कि गुण सामान्य है, उसीसमय ज्ञान की निर्मल पर्याय है; परन्तु सामान्य शक्तिस्वरूप द्रव्य में ज्ञान की निर्मलपर्याय का अभाव है अर्थात् सामान्य में विशेष का अभाव है; अत: द्रव्य पर्याय को स्पर्श नहीं करता है। यहाँ २०वें बोल में इसप्रकार कहते हैं कि जब शुद्धपर्याय है; उसीसमय त्रिकाली ध्रुव द्रव्य है; परन्तु ज्ञान की शुद्धपर्याय में द्रव्यसामान्य का अभाव है अर्थात् विशेष में सामान्य का अभाव है; अतः शुद्धपर्याय सामान्यद्रव्य को स्पर्श नहीं करती है। शुद्धपर्याय में सामान्य का अभाव है; क्योंकि विशेष में सामान्य का अभाव नहीं हो तो विशेष और सामान्य एक हो जायें; वस्तुस्वरूप ऐसा नहीं है। विशेष विशेष से ही है, सामान्य से नहीं है। यहाँ विशेष निरपेक्ष है, यह सिद्ध करना है। १८-१९-२० वें बोल में दो-दो प्रकार वर्तमान में सिद्ध करके एक दूसरे को स्पर्श नहीं करते हैं; इसप्रकार कहकर अभेद की श्रद्धा कराना है I १८ वें बोल में गुणभेद का गुणी में अभाव बताकर, अभेद गुणी सम्यग्दर्शन का विषय होता है, ऐसा बतलाया है। १९ वें बोल में प्रगट हुई सम्यग्ज्ञान की पर्याय है, उसे सामान्य, ध्रुव, ज्ञाता-दृष्टा सदृश स्वभाव स्पर्श नहीं करता है, ऐसा बतलाकर सामान्य ध्रुव सदृश स्वभावरूप आत्मा सम्यग्दर्शन का विषय है, ऐसा बतलाया 1

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