Book Title: Aling Grahan Pravachan
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 89
________________ ८० अलिंगग्रहण प्रवचन निर्मल पर्याय अंश है, उसके लक्ष से सम्यग्दर्शन नहीं होता है; परन्तु अंशी आत्मा के लक्ष से सम्यग्दर्शन होता है । अत: ज्ञान की पर्याय जो अंश है, उसका अंशी आत्मा में अभाव बतलाकर, अंशी शुद्धद्रव्य का लक्ष कराया है। आत्मा सामान्य है और पर्याय विशेष है। सामान्य में विशेष का अभाव है; इसप्रकार कहकर सामान्यद्रव्य का लक्ष कराया है। निर्मलपर्याय अंश है, उसके लक्ष से सम्यग्दर्शन नहीं होता है; परन्तु अंशी आत्मा के लक्ष से सम्यग्दर्शन होता है। अतः ज्ञान की पर्याय जो अंश है, उसका अंशी आत्मा में अभाव बतलाकर, अंशी शुद्धद्रव्य का लक्ष कराया है।आत्मा सामान्य है और पर्याय विशेष है। सामान्य में विशेष का अभाव है; इसप्रकार कहकर सामान्यद्रव्य का लक्ष कराया है। इस बोल में अलिंगग्रहण का अर्थ – अ-नहीं, लिंग-पर्याय, ग्रहण-ज्ञान की पर्याय – वह जिसको नहीं है अर्थात् आत्मा शुद्धज्ञान की पर्याय को भी स्पर्श नहीं करता है – ऐसा शुद्धद्रव्य है, इसप्रकार स्वज्ञेय को जान। ऐसा स्वज्ञेय श्रद्धा-ज्ञान में लेना, वह धर्म का कारण है। बोल २० : आत्मा सामान्य त्रिकाली द्रव्य से नहीं स्पर्शित, ऐसा शुद्धपर्याय है, ऐसा स्वज्ञेय को तू जान। __लिंग अर्थात् प्रत्यभिज्ञान का कारण ऐसा जो ग्रहण अर्थात् अर्थावबोध सामान्य जिसको नहीं है, वह अलिंगग्रहण है, इसप्रकार आत्मा द्रव्य से नहीं आलिंगित ऐसा शुद्ध पर्याय है, ऐसे अर्थ की प्राप्ति होती है। ___ पहले प्रत्यभिज्ञान का अर्थ कहते हैं। आत्मा में अनन्त गुण हैं, उनकी समय-समय अवस्था होती है। गुण ध्रुव रहते हैं। प्रत्यभिज्ञान एकसमय की ज्ञान की पर्याय है। यह वही वस्तु है जो पूर्वकाल में देखी थी; ऐसे जोड़रूप ज्ञान को प्रत्यभिज्ञान कहते हैं । उस प्रत्यभिज्ञान की पर्याय का कारण त्रिकाली ज्ञानसामान्य है। __ आत्मा त्रिकाली ज्ञानसामान्य से नहीं स्पर्शित शुद्धपर्याय है, अविकारीज्ञान की पर्याय त्रिकाली गुण के आधार से प्रगट नहीं होती है। निश्चय से उसको सामान्य का भी आधार नहीं है - ऐसा यहाँ सिद्ध करना है।

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