Book Title: Aling Grahan Pravachan
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 61
________________ ५२ अलिंगग्रहण प्रवचन नहीं करता है – ऐसा तेरा स्वज्ञेय जिसप्रकार है, उसप्रकार तू जान; ऐसा आचार्य भगवान आदेश देते हैं। ज्ञेय जिसप्रकार है, उसीप्रकार यथार्थ जानना-सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान का कारण है और उससे धर्म और शांति होती है। छठवाँ प्रवचन - माघ कृष्णा ७, बुधवार, दि. २८/२/१९५१ आत्मा का उपयोग अर्थात् ज्ञान का व्यापार है, उसमें पौद्गलिक कर्म का ग्रहण नहीं है । स्वसन्मुख उपयोग को यहाँ उपयोग कहते हैं। जो पर सन्मुख दृष्टि करता है, उसे पुण्य-पाप का परिणाम होता है। पुण्य-पाप के परिणाम आत्मा नहीं हैं; परन्तु आस्रव हैं-विकार हैं, वे आत्मा के स्वभाव नहीं हैं। आत्मा उपयोगलक्षण द्वारा कर्म का ग्रहण नहीं करता है। जो स्वसन्मुखता नहीं छोड़ता है, उसे उपयोग कहते हैं। ज्ञान उपयोग को पर का आलंबन नहीं है। ___ सातवें बोल में कहा था कि ज्ञान उपयोग को ज्ञेयों का अवलंबन नहीं है। उपयोग को स्वज्ञेय/आत्मपदार्थ का अवलंबन है। स्व में परज्ञेयों का अभाव है। जिसमें जिसका अभाव है, उसका अवलंबन नहीं हो सकता है। अतः आत्मा को उन ज्ञेयों का अवलंबन नहीं है । स्व का अवलंबन करता है, उसी को उपयोग कहते हैं और जो ज्ञान परपदार्थ का अवलंबन लेता है, उसे उपयोग नहीं कहते हैं। ज्ञान उपयोग बाहर से नहीं लाया जाता है। आठवें बोल में कहा था कि उपयोग परपदार्थ में से नहीं लाया जा सकता है। परपदार्थ की ओर झुके उपयोग को उपयोग ही नहीं कहते हैं, वह आत्मा ही नहीं है । जो आत्मतत्त्व की ओर झुकता है वही उपयोग है और वही आत्मा है। आत्मा में परपदार्थों तथा पुण्य-पाप का अभाव है; अतः उपयोग पुण्यपाप तथा परपदार्थों में से नहीं लाया जा सकता है।

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