Book Title: Aling Grahan Pravachan
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 37
________________ २८ अलिंगग्रहण प्रवचन आत्मा नहीं कहते। उसीप्रकार मात्र अनुमानज्ञान करनेवाले को आत्मा ही नहीं कहते। इससे निम्न न्याय निकलते हैं - १. यदि आत्मा की वर्तमान पर्याय में प्रगट केवल प्रत्यक्षज्ञान हो तो वर्तमान में छद्मस्थ को जो ज्ञान की हीनता दिखाई देती है, वह नहीं होनी चाहिये; परन्तु वर्तमान में ज्ञान की हीनता दिखाई देती है, अतः छद्मस्थ को वर्तमान पर्याय में केवल प्रत्यक्षज्ञान नहीं है; ऐसा निर्णय होता है। अतः कोई ऐसी दशा होनी चाहिये, जिसमें आंशिक प्रत्यक्ष और आंशिक परोक्ष ज्ञान हो सकता हो, वह साधकदशा है। २. तथा साधकदशा में आंशिक प्रत्यक्ष और आंशिक परोक्ष ज्ञान न हो तो आंशिक प्रत्यक्षज्ञान बढ़कर कभी भी संपूर्ण प्रत्यक्ष नहीं हो सकता है और परोक्ष का अभाव नहीं हो सकता है। अतः साधकदशा में आंशिक प्रत्यक्षज्ञान है, ऐसा निर्णय होता है। ३. साधकदशा में सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की निर्मल पर्याय आंशिक प्रगट है, उस समय देव-शास्त्र-गुरु आदि के प्रति रागरूपी व्यवहार सहचर होता है। इस न्याय से साधकदशा में अपने स्वभाव के श्रद्धा-ज्ञान सहित स्व-संवेदन आंशिक प्रत्यक्षज्ञान पर्याय में प्रगट होता है, उस समय अनुमानज्ञान भी आंशिक परोक्ष उस ही पर्याय में सहवर्ती होता है। ४. तथा जब विशेष पुरुषार्थ होने पर दर्शन-ज्ञान-चारित्र की सम्पूर्ण निर्मल पर्याय प्रगट होती है, तब देव-शास्त्र-गुरु के प्रति शुभरागरूपी व्यवहार का सर्वथा अभाव होता है और निश्चय मात्र रहता है। ___ तात्पर्य साधकदशा में ज्ञानस्वभावी आत्मा में सम्पूर्ण एकाग्रता होने पर सम्पूर्ण प्रत्यक्ष केवलज्ञान प्रगट होता है, उस समय परोक्षज्ञान का सर्वथा अभाव होता है और सकल प्रत्यक्ष केवलज्ञानमात्र रहता है। इस पाँचवें बोल में अलिंगग्रहण का अर्थ इसप्रकार है - अ-नहीं, लिंग-केवल अनुमान मात्र, ग्रहण जानना। तू केवल अनुमाता मात्र नहीं है।

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