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पांचवाँ बोल
२३ और अभाव द्वारा आत्मा को जाने तो ऐसा बने जैसा कि किसी को खरगोश के सींगों से दुःख उत्पन्न हो। जगत में खरगोश के सींग हैं ही नहीं, तो फिर वे सुख-दुःख के कारण कैसे हो सकते हैं ? हो ही नहीं सकते हैं।
उसीप्रकार आत्मा में इन्द्रियों का अभाव है तो उन अभावरूप इन्द्रियों द्वारा आत्मा जाने, ऐसा कैसे बन सकता है ? बन ही नहीं सकता। अतः आत्मा अतीन्द्रियस्वभाववाला है; ऐसा तू जान। इसका नाम सम्यग्दर्शन और धर्म है। बोल २ : आत्मा इन्द्रियप्रत्यक्ष का विषय नहीं है; ऐसा तू जान। ___ आत्मा इंद्रियों द्वारा ज्ञात नहीं होता, ऐसा तू जान। इंद्रियाँ उसमें हैं ही नहीं। जो वस्तु जिसमें न हो उसमें वह ज्ञात हो, ऐसा कभी नहीं बन सकता। आत्मा में इन्द्रियाँ ही नहीं हैं, अत: वह इंद्रियप्रत्यक्ष का विषय नहीं है। वह तो स्वयं ज्ञात होने योग्य है, ऐसा तू जान। बोल ३ : आत्मा इंद्रिय प्रत्यक्षपूर्वक अनुमान का विषय नहीं है। ऐसा तू जान। ___ शरीर हिलता है-चलता है, वाणी बोली जाती है, इसलिए आत्मा है; ऐसा इन्द्रिय के प्रत्यक्षपूर्वक अनुमान करने योग्य आत्मा नहीं है। आत्मा में इन्द्रियाँ ही नहीं हैं, अत: इन्द्रियप्रत्यक्ष अनुमानज्ञान से आत्मा ज्ञात नहीं हो सकता है; ऐसा तू जान।
जिसप्रकार धूम्र से अग्नि का अनुमान होता है, उसीप्रकार इन्द्रियगम्य किसी भी चिह्न से आत्मा ज्ञात नहीं होता; परन्तु स्वसंवेदनज्ञान से ज्ञात होता है; इसप्रकार तू जान। ___ 'तू जान' में से ऐसा अर्थ निर्णीत होता है कि शिष्य ऐसा है कि आत्मा
को जान सके। हीरों के व्यापारी को हीरों की दुकान प्रारंभ करते समय ध्यान में है कि हीरों के ग्राहक संसार में हैं। वे ग्राहक हमारे पास हीरे लेने आयेंगे, ऐसा उसे विश्वास है। परन्तु 'मैं हीरों की दुकान तो करता हूँ; किन्तु कोई ग्राहक हीरे लेने नहीं आवे तो'? ऐसी शंका उसे नहीं होती।