Book Title: Aling Grahan Pravachan
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 30
________________ पांचवाँ बोल २१ २. केवलज्ञान सकल प्रत्यक्ष है और उसमें आत्मा तथा सर्वपदार्थ साक्षात् ज्ञात होते हैं; परन्तु वह वर्तमान में छद्मस्थ को पूर्ण प्रगट नहीं है । जो वह वर्तमान में पूर्ण प्रगट हो तो संपूर्ण आनन्द प्रगट होना चाहिये । ३. साधक को स्वसंवेदन प्रत्यक्षज्ञान होता है और उसका अनुमानज्ञान प्रमाण है; क्योंकि स्वसंवेदन बिना का मात्र अनुमानज्ञान प्रमाण नहीं हो सकता। अतः साधकदशा में आंशिक प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों साथ रहते हैं । ४. साधकदशा में यदि ज्ञान मात्र परोक्ष ही माना जावे तो प्रत्यक्ष कभी नहीं होगा, परन्तु ऐसा नहीं होता । अतः स्वसंवेदन अंश - प्रत्यक्ष का वहाँ अस्तित्व है, वही बढ़कर संपूर्ण प्रत्यक्ष केवलज्ञान होता है। ५. साधकदशा में अंश प्रत्यक्ष स्वसंवेदनज्ञान है, उसके क्रम-क्रम से बढ़ने पर परोक्ष का अभाव होता जाता है और पूर्ण प्रत्यक्ष होने पर परोक्ष का सर्वथा अभाव होता है । ६. अनुमानज्ञान अकेला हो ही नहीं सकता; क्योंकि अनुमानज्ञान अकेला हो तो वह त्रिकाल रहे और प्रत्यक्ष होने का प्रसंग ही नहीं प्राप्त हो । ७. संपूर्ण प्रत्यक्षज्ञान अकेला हो सकता है; क्योंकि वहाँ परोक्ष का सर्वथा अभाव होता है। स्वसंवेदन बिना का मात्र अनुमान, वह ज्ञान ही नहीं है । अतः केवल अनुमानज्ञान मात्र से आत्मा ज्ञात होने योग्य नहीं है । उसीप्रकार केवल अनुमान मात्र से आत्मा स्व अथवा पर को नहीं जानता है। इस प्रमाण से आत्मा अनुमाता मात्र नहीं है। मात्र अनुमान से जानने का ज्ञान का स्वभाव नहीं है, उसीप्रकार मात्र अनुमान से ज्ञात हो, ऐसा ज्ञेय का स्वभाव नहीं है । इसप्रकार आत्मा केवल अनुमान से ही जाने, ऐसा वह ज्ञेयपदार्थ नहीं है। ऐसा स्व ज्ञेय का यथार्थ स्वरूप जानना, वह धर्म का कारण है । महामुनि जंगल में निवास करते थे। एक 'अलिंगग्रहण' शब्द में से बीस बोल निकाले हैं । उनमें से शुद्ध आत्मा प्रगट हो, ऐसा है । अत्यंत अद्भुत बात

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