Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 04
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi
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________________ * आगमोद्वारककृतिसन्दोहे यथाभद्र न सम्यक्त्वं विना कापि, क्रिया शुद्धेति चेद् बुध ! / अगिर्धाणुसंवर्तात् , शुक्लपाक्षिकता कथं ? // 12 // धर्मसि देवगुर्वादिसम्पर्कात् , सदृष्टिरिति हि श्रुतिः। सा क्रिया न च तत्माक्ते, सदृष्टिः किं फलं नहि 1 // 13 // गुणाः सन्तोऽप्यसन्तः स्यु-रसन्तः सन्त इत्यपि। चित्तस्य रोधेऽरोधे चेत्युक्तिर्मनो वशे यथा // 14 // तद्वदत्रापि सद्दष्टेमहिमा, विविधोक्तिभिः। व्यञ्जितः स्थेमता चास्या, निष्फलं तत् परं नहि // 15 // किश्च भव्या अभव्याश्च, मिथ्यादृशो मुनिव्रतात् / यान्ति अवेयकान्तेषु, देवेष्विति श्रुतोदितम् // 16 // AI बाह्यं फलं चेत्तद् विद्वन् ? तदेवान्तरसिद्धये / प्रत्यलं विकलाक्षाद्या, नाप्नुवन्ति सुदृष्टिताम् // 17 // यदोप्तमूषरे बीजं, न फलेद् वधूकेऽम्बुदे / तदा किं कृष्णभूमेऽपि, वर्षवापौ च निष्फलौ ? // 18 // नैवेति चेत् परेषां न, हेतुसन्दोह आप्नुयात् / सदृष्टेहेतुतां तत्कि, तथा भव्यात्मनां नहि ? // 19 // यथा जिनेशगीः सर्व-श्रोतषु प्रबलापि हि / न समानफला तद्व-दत्र स्यात्तत् किमद्भतम् ? // 20 // यत्कार्य |K विधिरागेऽपि, स्याद्विपर्ययतोऽन्तरा / तद्भावधर्मतामेति, भक्तिरागेण शोधनात् // 21 // बाध्यमानं ततो | - भाव-प्रत्याख्यानाङ्गतां व्रजेत् / प्रत्याख्यानं पुरा भक्त्या, संवेगेन समादृतेः // 22 // अत एव युगादीशोऽदाद् व्रतानि मरीचये। जमालये महावीरः, केवलज्ञानभास्करः // 23 // जलक्रीडाकृते दीक्षां, प्रादाद्वीरजिनेश्वरः। अतिमुक्तकुमाराय, तन्नायुक्तं निभालय // 24 // साधोरुत्कृष्टतः कालो-ऽप्रमादेऽन्तमुहूर्तिकः // 24 // भवे तथापि यत्सार्वः, ततो दीक्षयते जनम् // 25 // ज्ञात्वा मार्गमशेरवेदिगदितं संसारवैराग्यभाग, भक्त्युत्कर्षरतो विधानमुदितः कुर्याः क्रियायां मनः। वाचं कर्म च सर्वकर्महतये सद्भावनावासितो, येनाशेषमलान् विहाय रमसे आनन्दमार्गे सदा // 26 // इति यथाभद्रकधर्मसिद्धिः॥ R A .Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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