Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 09
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 202
________________ श्री पवकल्प भाष्यम् tips गेलन्ने वाउलाण तुपेत्तमण्णस्म णो दए / णिसिद्धोखमी चेच तेण तस्सण नभनी MANAS अंतरवाएण RE - त्ताण पुचि जे पत्ता / असठेहि अणुण्णवित पुस्यि पत्ताणा तं तं // 425 // अह समगमणुण्णविए काउ पमादं चि तो उ साहारं एवं चितियभगो अडणा तइयमि योगाम 20/26 // पच्छावि पत्थियाण सभावमिग्यातियो भने खेत / एमेव य आसण्यो दुद्धाणा व पताण // 2427 // भंगे चउत्थगंमी पुजा गुण्णाए अन्सटभावाण / पटमभंगसरिच्छा आभजणा तस्य णायव्वा / / 2428 // पुचगाईओ वि उग्गहो होति गिनाणडताए जा डियचो। अह होज्जा संघरणं कालस्येवो टुपक्से वि।।२४२१॥ पुष्चदिहवसेनीण जदि आगच्छे गिलाणइत्ताण्णे / जदि दोयह असंधरया तो गिनगमो खेत्तियागंतु // 2430 // . अह दोण्ह वि सधरणं दोणिण वि अति जा गिनायो दोष्णि पम्त्या अड़वा समणा य समणीओ। 2421 // गिलाण उपही किच्चा भत्तोवडिलद्धताऽविहिग्गडित पेल्नंती परखेतं साहमियतेणिया लिविहा // 2432 // उही कि यड़ी माया गिलागणिस्सार विज्जमाणे नि / छड्डेतु एति लेले भत्तोबहिलद्धताए उ॥३३॥ लति सुदराई गिलाणणियडीए एंति तो तन्थ / इतरे नि गिलाणो ती का तो मेति मेत्ताउ // .. 2434 // तेसुंतु शिग्गएK सच्चित्तादी उ तिनिह ज गेण्हे / तं . तेसि होति तेण्णं पच्छित चेच निविहं तु // 2425 // जे पुण* संधरंता एंति तड़ितेसिमा भने मेरा। आयरियनसभअज्जाय चेच नोच्छ समासेण // 2436 // अति संधरे सव्वे वसोनी ती असंधरे / जन्य दुल्ला भने दोवि तत्धिमा होति मगाIRVED // णिपाण्णतरुणन्मेहे मुंगितपादच्छिणासकरकण्णा / एमेव संजती. ण णवर वुइटीसू णाणतं // 428 // परिवार अमिको अच्छति णिप्पण्णतो तु णिग्गच्छे / अच्छति दुइट तरणा य णिति सेहे असेडिल्ले // 2439 // अच्छति जुगिया , णितियरे अहव मुगिता दोनि / त्तत्थाइल्ला अच्छे अच्छे समणि तळणीओ // 24 // 7 / N Accces 14Ace +

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