Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 09
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 248
________________ अहम् // श्रुतकेचलि श्रीभद्रबाहुस्वामि प्रीत श्रीदशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् क अप असमाधिस्थानाख्यं प्रथममध्ययनम्। ... नमो अरिहंताणं नमो सिद्धागं नमो आधरियागं नमो उवमायाणं नमो लोए सध्वसाहयं / एसो पंचनमुक्कारो, सबपावप्पणासणो / मंगलाणं च सब्वेसिं पढमं हाइ मंगलं // 1 // सुयं में आउसंतेणं भगवया एवमरवायंसूत्रं 1 // इह खलु धेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिठामा पन्नत्ता,कयरे खलु ते घेरेहि भगवंतेहिं वीसं असमाहिरगणा पन्नत्ता ? इमें रखते थेरेहिं भगवंतेहि वीसं अस. माहिदाणा पन्नत्ता, तंजहा-दवविचारीयाविभवति,अय्यमजियचारी यावि भवति, दुय्यमज्जियचारी थावि भवति, अतिरित्तसेज्जासणिए, रायणियपरिभासी,धेरोवघाइए, भूतोवघाइए, संजलणे,कोहणे, पिरिठमंसिप थावि भवति 10, अभिकखणं अभिक्षणं ओधारित्ता,णवाई अधिकरगाई अणुप्पण्णाइं उप्याड्या थावि भवति, पुराणाई भधिकरणारं सामितविउसविताई उदीरित्ता, अंकाले सम्झायकारी थावि भवति, ससरमख पाणिपांडे सहकरे,मंझकरे, कलहकरे, सरप्पमाणभोई,एसणार असमिए यावि भवति 20, प्रते थेरेहि भगवंतेहिं वीसं असमाहिठाया यन्नत्तति बेमि / / 02 // पठमा इसा समत्ता // 1 / / - -

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