Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 09
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
________________ 287 सी HIT Fran नामो विभाग ज्ज वा कालं // 6 // पुरिमा गीतागीता, महामहा तह मठामठा के / परिणामा परिणामा, अतिपरिणामा अवपूर्ण // 69 // तह धिति - संघयणोभय-संपण्णा तदुभएण वीणा या आय-परीभय-गोभयतरगा तह अण्णतरगा य॥७०॥ कप्पदिश्यादयो वि य, चतुशे जे सेतरा समसखाता। मावेस्वर-भेयादयो य जे ताण पुरिमाण // 1 // जो जह सत्तो बहुतरगुणो च तस्माहियं पि देजाहि / हीणतरे गियरं, नौसेज्जवसचडीणस्स / / 72 / / एत्य पुण बहुतरा भिक्युमोति अकयमरणाभिगयाय। जैतेण जीत-मदामभतंत-मविनिधि)गति-मादीयं // 73 / / आउहिया य दप्यमाय-को वा णिविज्जा / द सेनं कालं, भावं. वाऽऽसेवओ पुरिभो / / 74 // जं जीयदाणमु-तं, एयं पातं पमन्यः सहि यस्य / एत्तो च्चिय हाणतरमेगं वइटेज दप्पचयो / / 75 // आ. उदियाए हाणंतरंच,सदहाणमेव वा दिज्जाकप्येण पडिककमणं, त. दूभयमहवा विणिहिटहें / / 76 // आलोयणकालम्मि वि, संकेस विसो. हैं भावतो णातुं / हीणं वा हेय,वा, तम्मतं वा वि देज्जादि / / 77 // इति दयादिबहुगुणे, गुरुसेवाए य बहुतरं देजा। हीणतरे दीणतरं,वीण तरे जाव मौसी ति // 7 // प्रोसिज्जति मुबई सिंह, जीएणणं त. चारिह वहयो / यावच्चकारस्य य, दिजीत सागुग्गहतरं चा॥७९॥ तवधिओ तबस्स य, असमत्यो तवमसद्दहन्तो या तवसा त जो ण दममति, अतिपरिणाम -प्पसंगी य॥२०॥ सुबहुतर-गुणभंसी, दावत्तिमु पसज्जमाणो या पासत्यादी जोऽवि य, जतीण पडितप्यिभो बहुमौ / / - 1 // उक्कोसं तवभूमी, समतीओ साबसेसचरणो याद पणगादीतं, पाति जा धरति परियाओ॥२२॥ (दारगाहाभो तिमि आउदिव्या य पंचिोदयघाते मेदुणे य टप्पेणं / सेसेसुमोमाभिमय-सेव - गादीसुतीसुपि / / 13 / / तवगचियादिएम य, मूलुत्तर-दोमवति - यर गपसु / दमणचरित्तवन्ते, चियत्तकिच्चे य में य॥१४॥ अच्च तोसण्णेसु य, परलिंगदुचे य मूलकम्मे या भिक्युम्मि य विहिततके, अणदह - पारंचियं पत्ते // 5 // छदेणापोरयाए वह-पाचयावमाणे या मूल मूल्यवत्तिमु, बहुसो य पसज्जो भणियं / / 16 / /
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