Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 09
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
________________ 聽聽聽聽聽聽聽聽聽聽聽聽囊 श्री व्यवहार सूत्र :: उद्देशकः 7 233] एक्कं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए / जत्थेव ताऔ अप्पणी आयरियउवज्झाए पासेज्जा तत्व एवं वएज्जा 'अहं भंते ! अमुगीए अज्जाए सदि इमम्मि कारणम्मि पारोवयं पडएक्कं संभोग विसं. भोगं करेमि ३१सा य से परितपोज्जा एवं से जो कप्पा. पारोक्य या डिएक्कं संभोइयं विसंभोग करेत्तए, सा य से नो परितप्येज्जा एवं से कप्पड पारोक्त्रं पाडिएक्कं संभाइयं विसभोगं करेत्तए 4 // 4 // . ५॥जो कप्पइ निग्गन्धाणं जिग्गन्यि अप्पणो अरठाए पचवित्तए वामडावेत्तए वा सियाचित्तए व. सहावतएव उवदहावेत्तए वा समुंजिनए वासंसित्तए वा तीसे इन्तरिय दिसंवा अणुदिसंवा उहि सत्तए वा धारेत्तए वा // .6 // कप्पर जिEL: निगन्धिं अन्नसिं अठाए पव्यावतए वा मुण्डावेतए वा सिक्योवित्तए वा सेडावेत्तए वो उवहावेत्तए वा संभुंजितए वा संसितए वा तीसे इनरियं दिसं अणुदिसंवा उहिसितए वा धारेत्तए वा '१५८॥सू.७॥जो कम्पा जिगान्धाण निगान्य अध्यणो अटाए पव्वावेत्तए वा मुंडावेत्तए वा जाव धारितए वा। सू०८॥ कप्पर निग्गीण निगाधि अढाए पचावेत्तए वा जाव धारितए वा एम.९॥ जो कप्पड जिग्गंधीण विकिदिव्यं दिसंवा अणुदिसंवा उहिमित्तए वा धारेतए वा॥सू.१०॥ कस्पद निर्णधाणं विविडियं हि. संवा अणुदिन्स वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा १४४ासू.११॥ जो क. प्पर जिग्गंधाण विवि दहाई पाहडाई विभओसवेत्तए ।सू.१२॥ कप्पर जिग्गंधीणं विविाढाई पाहुराई विभओसवेत्तए १७९॥.१३॥नो कय्य इ निर्णधाण वा निगांधीण वा विकिट्टे काले सज्झाय उहि सित्ताए त्रा करताए वा सू.१४॥ कप्पर निगांधीण विक्डिएकाले सज्मायं करेनाः निगाधनिटमाए 264 // सू.१५॥नो काप्प३ निगाभाण वा निगांधी का सज्झाइए सज्झायं करेन्तए। सू.१६॥ कप्पइ निधाण वा निगांधीण वा यज्झाइए सज्झायं करेत्तए।सू.१७॥ जौ कप्स लिगंधाण वा निग्गीण वा अप्पणो असन्झाइए सन्मा. करना.कप्पा अन्जमन्जस्य वाराणंदलत्ताए निवासपोरयाए समागो जिग्गंधतीयवामपरियाया समयनिgirito कप्पर वज्झर्थताए उहि सत्तः ॥सू.१९॥ पञ्चवासपोर 聽聽聽聽聽聽聽聽聽聽聽聽聽
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