Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 09
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 233
________________ 獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎 [230] श्री आगम मुधा सिन्धुः नवमो विभार कम्पइ से भिलिंगसूत्रे पाडणारे तए, जो से कप्पर चाउलोटणे पोरगगाहेत्तए / तत्थ से पुवागमणेण दोवि पुवाउत्ताई कप्पर में दौवि पडिग्गाहेत्तए / लस्य से पुव्वागमणेा दोषि पाउने जो से कप्पड़ दौवि परिग्गाहेत्तए 10 जे से तत्व पुव्वागमोणं पुवाउत्ते से कप्यर पडिग्गाहेत्तए,जे से लत्य पुवागमणेणं पच्छाउत्ते जो से कप्पर पडिगगाहितए ११।७२।।सू. 1 // आरियउवझायस्स गणसि पंच अइसेसा पन्नत्ता तं जहा -आयरियउवज्झाए अंतो उवस्मयस्स पाए लिगिज्झियर पप्फोडेमाणे वा पमज्जेमाणे वा जाइक्कमइ / आरियउउवज्झाए अंतो उवस्सथरस उच्चारं वा पासवणं वा विचिमाणे वा विसोहेमाणे वा जाइक्कमहरा आरियउवज्झाए प्रभू इच्छा वेथाव. डियं करेज्जा इच्छा जो करेज्जा 3 / आर्यायउबज्झाए अंतो उनमयस्स (उवरए) एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे नाइक्कमइ 4 / भारियउव - ज्झाए बा िउवस्मयस्स एगराय वा टुरायं वा बसमाणे जाइकमाइ 5 / ॥सू.२॥ गणाघच्छेद्यस्य गं गणसि दो अइसेसा पन्नता,तं जहा - गणावच्छेइए अंतो उवस्मयस्स एगरायं वा दुराय वा वसमाणे नाइकमइ | गणावच्छेइए वाहि उवस्मथस्स एगरायं वा दुराय वा वन्समाणे लो अइकमा 2 / 26 // .3 // से गामंसि वा जाच संनिसंसि ना एगवगडाए एगदवाराए एगनिम्घमणपर्वसाए जो कप्पर बहणं अगड-मुयागं एगयो बत्थए / अन्धि थाइ एई केइ आयरपकप्पेधरे नत्धि था ण्हं के छए वा परिहारे वा 2 / जन्धि याइ ई केह आयारपकप्पधरे स. चेखि तेसि तप्यत्तियं छए वा परिहार वा 3 // सू.४॥से गामंसि वा जाब संजिवेन वा अभिनिव्वगाए अभिनिदुवाराए अभिनित्यमणापमणाए जो कप्पइ बहणं अगउसुथाणं एगयओवथए / त्धि थाइ एह केइ आयाश्पकप्पधर जेतपत्तिय रयणि मवसइ जत्यि या इत्धं कैद छए वा परिहारे वा 2 जस्थि या इत्य केइ आयारपकप्पधरे जे त. प्यत्तियं रनिं संवसर मवेसि तेमिं तप्पत्तियं छोए वा परिहारे वा 3 // 27 // . 5 // से गामंसि वा जाव मंजिवेससि वा ओमनिव्वगराए अभिनिधाराए अभिनिवस्यमणपवेसणाए जो कप्पद बसुयस्य व्र. ज्झामस्म एगाणि यस्स भिक्खुस्स अन्याए कमा पुण अप्यमय. 獎獎獎獎獎獎獎獎獎聽聽聽聽

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