Book Title: Agam 37 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उवगरणाई उप्पाएत्ता भवति, पोराणाई उवगरणाई सारक्खित्ता भवति, संगोवित्ता परित्तं जाणित्ता पच्युद्धरित्ता भवति, आहाविहिं| विसंभइत्ता भवति, सेत्तं उवगरणउप्पायणया, से किं तं साहिल्लया?, २ चव्विहा पं० २०-अणुलोमवइसहिते यावि भवति अणुलोमकायकिरियत्ता० पडिरूवकायसंफासणया० सव्वत्थेसुअप्पडिलोमया०, से तं साहिल्लया से किं तं वण्णसंजलणया?, २ चव्विहा पं० २०-आहातच्चाणं वण्वाई भवति, अवण्णवाई पडिहणित्ता, वण्णवाई अणुबूहित्ता, आयवुड्ढासेवी यावि०, से तंवण्णसंजलणया, से किं तं भारपच्चोरुहणता?, २ चव्विहा पं० २०-असंगहियपरिजणं संगिण्हित्ता भवति, सेहं आयारगोयरं गाहित्ता भवति, साहम्मियस्स गिलायमाणस्स आहाथाम वेयावच्चे अब्भुद्वित्ता भवति, साहम्मियाणं अधिकरणंसि उप्पण्णंसि तत्थ अणिस्सितोवस्सितो वसंतो अपक्खगाहए मज्झत्थभावभूते सम्म ववहरमाणे तस्स अधिकरणस्स खामणविउसमणयाए सया समियं अब्भुट्टित्ता भवति कह (नु) साहम्मिया अप्पसद्धा अप्पझंझा अप्पकलहा अप्पकसाया अपतुमंतुमा संयमबहुला संवरबहुला समाहिबहुला अप्पमत्ता संजमेणं तवसा अपाणं भावेमाणा एवं चणं विहरेज्जा, से तं भारपच्चोरुहणता, एसा खलु थेरेहिं भगवंतेहिं अट्ठविहा गणिसंपदा पण्णत्तत्ति बेमि। १५॥ गणिसंपदध्ययनं ४॥ ____ सुयं मे आउसंतेणं भगवया एवमक्खायं इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं दस चित्तसमाहिठाणा पं०, कयरे खलु ते थेरेहिं०?, इमे खलु ते० दस चित्तसमाहिठाणा पं० ०-तेणं कालेणं० वाणियगामं नामं नयरे होत्था एत्थ णं नगरवण्णओ भाणियव्यो, ॥श्रीदशाश्रुतस्कंधसूत्र। पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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