Book Title: Agam 37 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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अहे रुक्खमूलगेहंसि वा, मासियं णं भिक्खु० कप्पन्ति तओ उवस्सगा अणुण्णवित्तए तं०-अहे आरामगिहं अहे वियडगिहं अहे रुक्खमूलगिह, मासियण्ण० कप्पड़ तओ उवस्सया उवायणावित्तए तं चेव, मासियं णं० प्पड़ तओ संथारगा पडिलेहित्तए तं०-|| पुढवीसिलं वा कट्ठसिलं वा आहासंथडमेव, मासियं णं भिक्खुपडिम पडिवण्णस्स कप्पड तओ संथारा अणुण्णवेत्तए तं चेव.| मासियं णं० कप्पंति तओ संथारा ओवायणावित्तए तं चेव, मासियं० इत्थी उवस्सयं उवागच्छिज्जा से इत्थी एवं पुरिसे णो से कप्पड़ तं पडुच्च निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, मासियं० जाव पडिवण्णस्स केइ उवस्सयं अगणिकाएण झामेजा नो से कप्पइ तं पडुच्च निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, तत्थ णं केइ वधाय असिं गहाय आगच्छेजा जाव से नो कप्पइ तं पडुच्च अलंबित्तए वा पलंबित्तए वा, कप्पड़ से आहारियं रीइत्तए, मासियं णं भिक्खुपडिमं जाव पायंसि थाणू वा कंटए वा हीरए वा सक्करा वा अणुपविसेज्जा नो कम्पइ से नीहरित्तए वा विसोहित्तए वा कप्पइ से आहारियं रीइत्तए, मासियं णं जाव अच्छिसि वा० पाणाणि वा बीयाणि वा रए वा परियावजिज्जा नो से कप्पइ नीहरित्तए वा विसोहित्तए वा, कप्पइ से आहारीयं रीइत्तए, मासियंणं० जत्थेव सूरिए अस्थमेज तत्थेव जलंसि वा थलंसि वा दुग्गंसि वा निण्णंसि वा पव्वयंसि वा विसमंसि वा गड्डाए वा दरीए वा कप्पइ से तं स्यणिं तत्थेव, उवायणावित्तए, नो से कप्पइ पदमवि गमित्तए, कप्पड़ से कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव जलते पाईणाभिमुहस्स वा दाहिणाभिमुहस्स वा पडीणाभिमुहस्स वा उत्तराभिमुहस्स वा आहारीयं रीइत्तए, मासियं णं० नो कप्पइ अणंतरहियाए पुढवीए ॥श्रीदशाश्रुतस्कंधसूत्र।
पू. सागरजी म. संशोधित
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