Book Title: Agam 37 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निदाइत्तए वा पयलाइत्तए वा, केवली बूया आदाणमेयं, से तत्थ निदायमाणे वा पयलायमाणे वा हत्थेहिं भूमि परामुसेजा अहाविधिमेव ठाणं ठाइत्तए निक्खमित्तए वा, उच्चारपासवणेणं उब्बाहिजेजा नो से कप्पइ ओगिण्हित्तए, कप्पड़ से पुव्वपडिलेहितए थंडिले उच्चारपासवणं परिडवित्तए, तमेव उवस्मयं आगम्म अहाविधिं ठाणं ठाइत्तए, भासियं० नो कप्पइ ससरक्खेहिं पाएहिं (काएहिं प्र०) गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा नि० पवि०, अह पुण एवं जाणेज्जा ससरक्खे से अत्ताए वा जल्लत्ताए वा मलत्ताए वा पंकत्ताए वा विद्धत्थे( परिणए से कप्पड़ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्ख० पवि०, मासियं० नो कप्पड़ सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा हत्थाणि वा पायाणि वा दंताणि वा अच्छीणि वा मुहं वा उच्छोलित्तए वा पधोवित्तए वा णण्णत्थ् लेवालेवेण वा, मासियं णं० नो कप्पइ आसस्स वा हत्थिस्स वा गोणस्स वा महिसरस वा कोलस्स वा साणस्स वा (कोलसुणगस्स वा) दुट्ठस्स वा वग्धस्स वा० आवडमाणस्स पदमवि पच्चीसक्कित्तए, अदुट्ठस्स आवडमाणस्स कप्पति जुगमित्तं पच्चोसक्त्तिए, मासियं णं० नो कप्पइ छायाओ सीयंति उण्हं इत्तए उहाओ उण्हंति नो छायं एत्तए, जं जत्थ जया सिया तं तत्थ अहियासए, एवं खलु एसा मासिया भिक्खुपडिमा अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं कारणं फासित्ता पालित्ता सोहित्ता तीरित्ता किट्टित्ता आराहित्ता आणाए अणुपालित्ता भवति ॥३२॥ दोभासियं णं भिक्खुपडिम० निच्चं वोसढकाए तं चेव जाव दो दत्ती, तिमासियं० तिण्णि दत्तीओ चाउमासियं० चत्तारि दत्तीओ पंचमासियं पंच दत्तीओ छमासियं छ दत्तीओ सत्तमासियं सत्त ॥श्रीदशाश्रुतस्कंधसूत्र ॥ पू. सागरजी म. संशोधित २० For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55