Book Title: Agam 37 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 34
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया, अज्जोत्ति समणे भगवं महावीर बहवे निग्गंथा य निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वदासी एवं खल अज्जो! तीसंमोहनीयद्वाणाई इमाई इत्थी वा पुरिसो वा अभिक्खणं आयरमाणे वा समायरमाणे वा मोहणिज्जताए कम्मंपकरेति, तं०-'जे केवि तसे पाणे, वारिमझे विगाहिया। उदएणऽक्कम मारेति, महामोहं पकुव्वई॥१८॥ सीसावेढेण जे केई, आवेढेइ अभिक्खणी तिव्वासुभसमायारे, महामोहं०॥१९॥ पाणिणा संपिहिताणं, सोयमावरि पाणिणी अंतो न दंतं मारेइ०॥२०॥ जायतेयं समारब्म, बहु ओलंभिया जणी अंतो धूमेण मारेइ०॥२१॥ सीसंमि जे पहणंति, उत्तमंगंमि चेयसा विभज मत्थयं फाले०॥२२॥ | पुणो २ पणिधीए, हणित्ता बाले उवहसे जणीफलेण अदुवा दंडेणं०॥२३॥गूढायारी निगहिज्जा, मायं मायाए छायए।असच्चवाई निहाइ०॥२४॥ धंसेइ जो अभूएणं, अकम्म अत्तक-मुणा। अदुवा तुममकासित्ति०॥२५॥ जाणमाणो पुरिसओ, सच्चमोसाइ भासति।अक्खीणझंझे पुरिसे०॥२६॥अणायगस्स नयवं, दारं तस्सेव धंसिया।विडलं विक्खोभइत्ताणं, किच्चाणं पडिबाहिरं॥२७॥ उवासंतंपि झंपित्ता, पडिलोमाहिं वग्गुहि। भोगभोगे वियारेति०॥२८॥ अकुमारभूए जे केइ, कुमारभूएत्तिऽहं वए। इत्थीविसयगेहीए॥२९॥ अभयारीजे केई,बंभयारीतिऽहं वएगद्दभेव गवं मझे, विस्सरं नदती नद॥३०॥ अप्पणो अहिए वए। गद्दभेव गवं मझे, विस्सरं नदती नदं॥३०॥ अप्पणो अहिए बाले, मायामोसं बहुं भसे। इत्थीविसयगिद्धीए०॥३१॥ जनिस्सिए उव्वहती, जससाऽभिगमेण यो तस्स लुब्भइ वित्तमि०॥३२॥ ईसरेण अदुवा गामेणं, अणीसरे ईसरीकए। तस्स संपरिगहित( यहीण )स, सिरी अतुल्लमागया॥३३॥ ईसादोसेण आइडे, ॥श्रीदशाश्रुतस्कंधसूत्रा पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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