Book Title: Agam 37 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उवासगपडिमा २७) अहावरा नवमा उवासगपडिमा सव्वधम्मरुयी यावि भवति जाव राओ (राओवरायं) बंभयारी सचित्ताहारे|| से परिणाए भवति आरंभे से परिण्णाए भवति पेसारंभे से परिणाए भवति, उहिट्ठभत्ते से अपरिण्णाए भवति, से णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जह० एगाहं वा दुयाहं वा जाव उक्कोसेणं नव मासा विहरिजा, से तं नवमा उवासगपडिमा २८) अहावरा दसमा उवासगपडिमा सव्वधम्मरुई यावि भवति जाव उद्दिद्धभत्ते से परिण्णाए भवति, से णं खुरमुंडए वा छिहलिधारए वा, तस्स णं आभ(इ)हस्स वा समाभट्ठस्स वा कम्पति दुवे भासाओ भासित्तए तं०-जाणं वा जाणं अजाणं वा नो जाणं, से णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जह० एगाहं वा दुयाहं वा उक्को० दस मासा विहरिजा, दसमा उवासगपडिमा।२९। अहावरा एक्कारसमा उवासगपडिमा सव्वधम्मरुई जाव उहिट्ठभत्ते से परिण्णाए भवति, से णं खुरमुंडए वा लुत्तसिरए वा गहियायारभंडगनेवत्थे जारिसे समणाणं निग्गंथाणं धमे पं० तं सम्म कारण फासेमाणे पालेमाणे पुरओ जुगमायाए पेहमाणे दठूण तसे पाणे उद्धटु पाए | रीएज्जा साहटु पाए रीएजा वितिरिच्छं वा पायं कटु रीएजा, सति परक्कमे संजतामेव परिक्कभेजा, नो उज्जुयं गच्छेज्जा, केवलं से नायए पेजबंधणे अवोच्छिण्णे भवति, एवं से कप्पति नायविहिं एत्तए, तत्थ से पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते चाउलोदणे पच्छाउत्ते भिलिंगसूवे कप्पति से चाउलोदणे पडिगाहित्तए नो से कप्पइ भिलिंगसूवे पडिगाहित्तए, तत्थ णं से पुवागमणेणं पुव्वाउने भिलिंगसूवे पच्छाउत्ते चाउलोदणे कप्पति से भिलिंगसूवे पडिगाहित्तए नो से कप्पति चाउलोदणे पडिगाहित्तए, तत्थ् णं से ॥श्रीदशाश्रुतस्कंधसूत्र ॥] पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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