Book Title: Agam 37 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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|तहा दड्ढे (प्र० सु दड्ढेसु), न रोहंति भवंकुरा ॥१५॥ चिच्चा ओरालियं बोदि, नामगोत्तं च केवली। आउयं वेयणिज्ज च,|| छित्ता भवति नीरए ॥१६॥ एवं अभिसमागम्म, चित्तमादाय आउसो! सेणिसोधिभुवागम्भ, आया सोहीभुवागए॥१७॥ ति बेमि॥ चित्तसमाधिस्थानाध्ययनं ५॥
सुयं मे आउसंतेणं भगवया एवमक्खायं इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं इक्कारस उवासगपडिमाओ पं०, कयराओ खलु ताओ// थेरेहिं भगवंतेहिं इक्कारस उवासगपडिमाओ पं०?, इमा खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं इक्कारस उवासगपडिमाओ पं० २०अकिरियावादी यावि भवति नाहियवाइ नाहियपण्णे नाहियदिट्ठी नो सम्मावादी नो णितियावादी नोसंतिपरलोगवादी णत्थि इहलोए णत्थि परलोए णत्थि माया णत्थि पिया णस्थि अरिहंता नस्थि चक्कवट्टी णत्थि बलदेवा णत्थि वासुदेवा णत्थि नरया णत्थि नेरइया णत्थि सुक्कडदुक्कडाणं फलवित्तिविसेसे णो सुचिण्णा कममा सुचित्रफला भवंति णो दुच्च्ण्णिा कम्मा दुच्च्ण्णिफला भवंति अफले कल्लाणपावए नो पच्चायति जीवा णत्थि निरया णत्थि सिद्धी, से एवंवादी से एवंपण्णे एवंदिट्ठी एवंछंदरागभिणिविटे आवि भवति, से य भवति महिच्छे महारंभे महापरिग्गहे अहम्भिए अहम्माणुए अहम्मसेवी अहम्मिटे अधम्मक्खाई अधम्मपलोई अधम्मजीवी अधम्मपलज्जणे अधम्मसीलसमुदायारे अधम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणे विहरइ, हण छिंद भिंद विकत्तए अंतके लोहितपाणी चंडा रूद्दा खुद्दा साहस्सिया उकंचणमायाणियडिकूडकवडसातिसंपओगबहुला दुस्सीला दुप्परिचया दुरणुणेया दुव्वया दुष्पडियाणंदा ॥श्रीदशाश्रुतस्कंधसूत्र ।
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पू. सागरजी म. संशोधित
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