Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra
Author(s): Devendramuni
Publisher: SuDharm Gyanmandir Mumbai

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Page 467
________________ (ग) समवायाङ्ग सू. १३३ प. ९८५१ (घ) महावीर चरियं, ३।३।७१।१ ८८. देवोऽभूदिति द्वितीयः -समवायाङग, अभयदेव वृत्ति १३६ प. ९९ ८९. प्रान्ते प्राप्य सहस्रारमभूत्सूर्यप्रभोऽमरः । -उत्तरपुराण ७४।२४१३४५९ ९०. पुत्ता धणंजयस्सा पुट्टिल परियाउ कोटि सब्वट्टे -आवश्यक नियुक्ति गा. ४४९ ९१. सत्तरससागरोवमठितीतो --आवश्यक चूर्णि. २३५ (ख) आवश्यक मलय. २५१ ९२. आवश्यक नियुक्ति गा. ४४९ (ख) आवश्यक चूणि. प. २३५ (ग) त्रिषष्टि १०।१।२१७ (घ) आवश्यक मलय. २५१ (क) ततो नन्दनाभिधानो राजसूनुः छत्राग्रनगर्यां जज्ञे इति --समवायाङग अभयदेववृत्ति १३६ स. प. ९९ (ख) आवश्यक मलय. व. २५२।१ ९३. (क) पणवीसाउं सयसहस्सा --आवश्यक नियुक्ति गा. ४४९ (ख) आवश्यक मल. व. प. २५२ ९४. आवश्यक चूर्णि. २३५ ९५. (क) आवश्यक नियुक्ति गा. ४५० (ख) आवश्यक चूणि प. २३५ (ग) आवश्यक मलय वृ. प. २५२ (घ) समवायाङग अभय. १३६ स. प. ९९ ९६. (क) आवश्यक चूणि २३५ (ख) आवश्यक मलयगिरिवृत्ति प. २५२ ९७. (क) आवश्यक नियुक्ति गा. ४५० (ख) आवश्यक चूर्णि प. २३५ (ग) समवायाङग अभयदेव व. १३६ स. प. ९९ ९८. ततो ब्राह्मणकुण्डग्रामे ऋषभदत्तब्राह्मणस्य भार्याया देवानन्दाभिधानायाः कुक्षावुत्पन्न इति पञ्चमः -समवायाङग अ. १३६ प. १२ (अ) माहणकुंडग्गामे कोडालसगुत्तमाहणो अस्थि । तस्य घरे उववन्नो, देवाणंदाइ कुच्छिसि ।। --आवश्यक नियुक्ति गा. ४५७ "चइस्सामि" त्ति यतस्तीर्थकरसुराः पर्यन्तसमये अधिकतरं कान्तिमन्तो भवन्ति विशिष्टतीर्थकरत्वलाभात शेषाणां तु षष्मासावशेषे काले कान्त्यादिहानिर्भवति, उक्तं:माल्यम्लानिः कल्पवृक्षप्रकम्पः । श्री होनाशो वाससा चोपरागः । दैन्यं तन्द्रा कामरागोङगभङगो । दृष्टिभ्रान्तिर्वेपथुश्चारविश्च ॥१।। इति -कल्पसूत्र टिप्पण, आचार्य पृथ्वीचन्द्र सू.३ प. १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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