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२.
३.
१. पासे अरहा 'पुरिसादाणीए' पुरुषाणां प्रधान: पुरुषोत्तम इति अथवा समवायाङ्गवृत्तावुक्तम्-" पुरुषाणां मध्ये आदानीयः -- आदेयः पुरुषादानीयः " ( पत्र १४ -- २) उत्तराध्ययन वृहद्वृत्तौ “पुरुषश्चासौ पुरुषकारवत्तितया आदानीयश्च आदेयवाक्यतया पुरुषादानीयः, पुरुषविशेषणं तु पुरुष एव प्रायस्तीर्थकर इति ख्यापनार्थम् पुरुषैर्वा आदानीयः -- आदानीयज्ञानादिगुणतया पुरुषादानीग ( पत्र २७० -- २ ) --- कल्पसूत्र पृथ्वीचन्द्र टिप्पनकम् पृ० १७
(ख) कल्पसूत्र, सन्देह विषौषधि, टीका प० ११९
(ग) कल्पसूत्र किरणावलि पत्र १३२
(घ) कल्पसुबोधिका सू० १४९ १० ३६९
४.
५.
६.
परिशिष्ट
(पूर्वपरम्परान्तर्गत टिप्पणानि )
(ड) पुरुषाणां मध्ये आदानीयः -- आदेयः पुरुषाऽदानीयः --
-- भगवती, श० ५, उ० ९ अभयदेव वृत्ति प० २४८ (च) मुमुक्षूणां पुरुषाणामादानीया आश्रयणीयाः पुरुषाऽऽदानीयाः महतोऽपि महीयांसो भवन्ति - सूत्रकृताङ्ग १, श्रु० अ० ९, प० १८६-१
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित पर्व ९, सर्ग २ पाणिग्रहण के लिए कुशलस्थ ( कन्नोज) प्रदेश में जाने पर वहाँ कलिंगादि देशों के यवनों ने संघर्ष करने की ठानी। राजकुमार पार्श्व की ललकार के समक्ष सभी यवन विनत होगए और परस्पर मैत्री सम्बंध स्थापित किया । -- त्रिषष्टि० पर्व ९, सर्ग ३
(क) पार्श्वनाथ चरित भावदेवसूरि, सर्ग ६, श्लोक २१३
(ख) त्रिषष्टि० ९ ३
त्रिषष्टिशलाका० पर्व ९. सर्ग १, श्लोक २५
वाराणसी के समीप आश्रमपद उद्यान में धातकी वृक्ष के नीचे कायोत्सर्ग करके खड़े थे ।
-त्रिषष्टि० ९१३
७.
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प्रस्तुत सूत्र की तरह सावायांग में भी आठ गणधरों का ही उल्लेख है। " पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणिअस्स अट्ठगणा, अट्ठगणहरा होत्था तं जहा - गाहा -; सुभेय सुभघोसे य, वसिट्ठे बंभयारिय
सोमे सिरिधरे चेव, वीरभद्दे जसे इ य ||८१८
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आचार्य हेमचन्द्र के त्रिषष्टि शलाका ० (९।३) के अनुसार भ० पार्श्वनाथ के १० गणधर थे जिनमें आर्यदत्त गणधर सबसे प्रमुख थे ।
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