Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra
Author(s): Devendramuni
Publisher: SuDharm Gyanmandir Mumbai
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३१. भीया य सा तहिं दटठ्ठे एगंते संजयं तयं । बाहाहि काउ संगोप्फं, वेववाणी निसीयई ॥ जइ सि रूवेण वेसमणो, ललिएण नलकूबरो । तहा वि ते न इच्छामि, जइ सि सक्खं पुरंदरो । पक्खंदे जलियं जोइं, धूमकेउं दुरासयं । नेच्छति वंतयं भोक्तुं कुले जाया अगंधणे । धिरत्थु तेऽजसोकामी, जो तं जीवियकारणा । वंतं इच्छसि आवेउं, सेयं ते मरणं भवे । ३३. ( क ) त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र ६८ (ख) उत्तराध्ययन
३२.
३४. (क) वसुदेव हिन्डी
(ख) त्रिषष्टि (ग) जैनरामायण
शलाका. सर्ग ७
३५. (क) अर्हत भगवती मल्ली के विस्तृत वर्णन के लिए देखे -- ज्ञाता धर्मकथा १९ (ख) त्रिषष्टि शलाका ६।६
३६. अर्हत् शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ एवं अरनाथ ये तीनों तीर्थंकर क्रमश: पांचवें, छट्ठे एवं सातवें चक्रवर्ती हुए। एक ही भव में दो महान् पदवी का उपभोग किया। इनके विस्तृत जीवन चरित्र के लिए देखें
१. चप्पन्न महापुरुष चरिउं
२. निषष्टि शलाका पुरुष चरित्र ५।१, ६१, ६।२ ३. शांतिनाथ चरित्र
३७. ( क ) धण मिहुण सुर महब्बल ललियंग य वइरजंघ मिहुणे य । सोहम विज्ज अच्चु चक्की सव्वट्ठ उसभे य ।
एक परिशीलन ।
(ख) लेखक की पुस्तक ऋषभदेवः
३८. त्रिषष्टि. १।१।५५ से ६१ पृ. ३२
३९. (क) आवश्यक नियुक्ति गा. १६८
(ख) आवश्यक चूर्णि पृ. १३२ (ग) त्रिषष्टि. १।१।१४० से १४३ प. ६
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४०. (क) आवश्यक मलय. वृ. प. १५८ (ख) त्रिषष्टि. १।१।७१४।७१५ ४१. ( क ) आवश्यक चूर्णि. १३३ - १३४ (ख) त्रिषष्टि १।१।९०७ – ९०९ प. ३२.
- उत्तरा २२।३५
--उत्तरा २२।४०-४३
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- आव. मलय. वृत्ति पृ. १५७।१
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