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२ अर्धसम--प्रथम और तृतीय ; द्वितीय
और चतुर्थ पाद समान हों।
ग्राम और मूर्च्छनाएँ :सात स्वरों के तीन ग्राम हैं :
३ विषमसम--किसी भी पाद की संख्यां एक दूसरे से नहीं मिलती हो।
-अनुयोग द्वार गा० १० सतस्वर
१ षड्ज ग्राम २ मध्यम ग्राम, २ गांधार ग्राम षड्ज ग्राम की सात मूर्च्छनाएँ :
१ षड्ज--नासिका, कंठ, छाती, ताल, जिह्वा, दांत, इन छह स्थानों से उत्पन्न ।
२ वृषभ--जब वायु नाभि से उत्पन्न होकर
कण्ठ और मूर्धा से टक्कर खाकर वृषभ के शब्द की तरह निकलता है ।
१ मार्गी २ कौरवी, ३ हरिता, ४ रत्ना ५ सारकान्ता ६ सारसी ७ शुद्ध षड्ज मध्यम ग्राम की सात मूर्च्छनाएँ ---
३ गांधार--जब वायु नाभि से उत्पन्न
होकर हृदय और कण्ठ को स्पर्श करता हुआ सगंध निकलता है।
१ उत्तरमंदा
२ रत्ना
४ मध्यम --जो शब्द नाभि से उत्पन्न होकर हृदय से टक्कर खाकर पुनः नाभि में पहुँचे । अर्थात् अन्दर ही अन्दर गूंजता रहे ।
५ पञ्चम--नाभि, हृदय. छाती कंठ और सिर इन पाँच स्थानों से उत्पन्न होने वाला स्वर ।
३ उत्तरा ४ उत्तरासमा ५ समकान्ता ६ सुवीरा ७ अभिरूपा
गांधार ग्राम की सात मूर्च्छनाएँ
६ धैवत--अन्य सभी स्वरों का जिसमें
मेल हो, इसका अपर नाम रैवत भी
७ निषाद--जो स्वर अपने तेज से अन्य स्वरों को दबा देता है और जिसका देवता सूर्य हो।
१ नदी २ क्षुद्रिका ३ पूरिमा ४ शुद्धगान्धार ५ उत्तरगांधार
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