Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra
Author(s): Devendramuni
Publisher: SuDharm Gyanmandir Mumbai

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Page 469
________________ ११२. (क) आवश्यक चूणि पृ० १५२, (ख) आव० नि० गा० १८६ ११३. कल्पसूत्र आचार्य पृथ्वीचन्द्र टिप्पण सू० १७ ११४. (क) स्थानाङ्ग, अभयदेव वृत्ति पृ० ४९३ (ख) प्रवचन सारोद्वार, सटीक उत्तर भाग उवसग्गगब्भहरणं इत्थीतित्थं अभाविया परिसा । कण्हस्स अवरकंका, उत्तरणं चन्दसूराणं ।। हरिवंसकुलुप्पत्ती, घमरुप्पाओ य अट्ठसया सिद्धा । अस्संजएसु पूया, दस वि अणंतेण कालेणं ।। --स्थानाङ्ग सू० ७७७ ११६. प्रवचन सारोद्धार, सटीक उत्तरभाग ११७. उपदेश माला-दो घड़ी टीका पत्र २८३ ११८. भगवती; शतक १५, पृ० २९४ ११९. (क) समवायाङ्ग ३४ वां समवाय (ख) योगशास्त्र, हेमचन्द्राचार्य पृ० १३० (ग) अभिधान चिन्तामणि ११५६-६३ । १२०. वासीतीहिं राइदिएहिं वइक्कतेहिं तेसीतिमस्स राइंदियस्स परियाए वट्टमाणे दाहिणमाहणकुण्डपुरपुरसन्निवेसाओ......देवाणंदाए माहणीए जालंधरायणगुत्ताए कुच्छिसि गब्भं साहरइ । --आचाराङ्ग द्वि० श्रु० ३८८-१-२ १२१. समवायाङ्ग ८३- पत्र ८३।२ १२२. स्थानाङ्ग सू० ४११ स्था० ५ प० ३०७ १२३. आवश्यक नियुक्ति पृ० ८०--८३ १२४. गोयमा! देवाणंदा माहणी मम अम्मगा । --भगवती, शतक ५, उद्दे० ३३ पृ० २५९ १२५. गर्भे प्रणीते देवक्या रोहिणी योगनिद्रया । . अहो विस्रं सितो गर्भ इति पौरा विचक्रुशुः ।।१५ ।।। --श्रीमद्भागवत, स्कंध १० पृ० १२२-१२३ १२६. महात्माबुद्ध का भी यह मन्तव्य है कि स्त्री अर्हत् व चक्रवर्ती नहीं बनती। --अंगुत्तरनिकाय १।१५।१२-१३ १२७. दिगम्बर परम्परा में मल्लि को पुरुष मानते हैं, देखिए--महापुराण १२८. सत्तरियसयठाणा" नामक श्वेताम्बर ग्रन्थ में उनका नाम 'श्रमण' दिया है। दिगम्बर "वैश्रमण" मानते हैं । ज्ञातृधर्मकथा में 'महाबल' नाम आया है। १२९. इमेहियाणं विसाहिय-कारणे हिं आसेविय बहुलीकएहिं तित्थियर-णाम-गोय-कम्मं निव्वंतेसु, २ जहाअरहतसिद्धपवयण गुरुथेर बहुस्सुए तवस्सीसुं । वच्छल्लया य एसिं अभिक्खनाणोवयोगे य ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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